Book Title: Dharmvidhiprakaranam
Author(s): Shreeprabhsuri
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 386
________________ अष्टमं सद्धर्मफलद्वारम् ३५१ न करेमि मित्त जड़ तुह, वसणावडियस्स अज्ज साहिज्जं । ता मज्झ कुलीणस्स वि, कोलिन्नकहा वि अत्थमिया ॥१२३७॥ तु नेहमोहियमणो, अणत्थमवि अप्पणा सहेमि अहं । किं तु कुडुंबमणत्थं, जं पावइ तं तुमे दुसहं ॥१२३८॥ मह मित्त ! तुमं इट्ठो, सया वि एयं कुटुंबमवि इट्ठ | ता वग्घदुत्तडणं, नाए पडिओ कहं होमि ? ॥१२३९ ॥ डिंभसहि इमेहिं, चिट्ठामि सकीडिओ पलासु व्व । ता तेसिं अणुकंपसु, वच्चसु अन्नत्थ पसिऊण ॥१२४०॥ सम्माणिओ पि बहुयं, पुरोहिओ तेण इय निराकरिओ । नीर तग्गिहाओ, दइवे रुट्ठम्मि को सरणं ॥ १२४१ ॥ अह आचच्चरमणु-गच्छिऊण वलिऊण पव्वमित्तम्मि । चितइ वसणनईए, पुरोहिओ रोहिओ तत्थ ॥१२४२॥ उवरियं जेसि मए, संजाओ तेसि एस परिणामो । ता होमि कस्स दीणो, अहुणा नणु दिव्ववसगोऽहं ॥१२४३॥ किं जाम अहं अहुणा, पणाममित्तस्स तस्स पासम्म । तत्थ वि न अत्थि आसा, जं पीई तंसि वयणमई ॥१२४४|| अहवा किमणेण वि-गप्पिएण जं सो वि मज्स अत्थहिउ । पिक्खामि तं पि को (सो) वि हु, उवयारी कस्स वि हवेइ ॥१२४५ ॥ इय चितिउं पुरोहा, पणाममित्तस्स मंदिरे पत्तो । सो तंइंतं दट्टु, कयंजली उट्ठिउ समुहो ॥१२४६॥ जंप य सायगं तुह किम - वत्था मित्ततू एरिसी अज्ज । किं कज्जं कह तुमए, करेमि जेणाहमचिरेण ॥१२४७॥ तो तस्स सोमदत्तो, तं वुत्तं तं कहित्तु जंपेइ । मुचिस्से निवसीमं, साहिज्जं कुणसु मह मित्त ! ॥१२४८ ॥ सो भइ मित्ताहं, महुरालावेहिं तुज्झ अधमण्णो । काऊ य साहिज्जं, अहुणा अरिणो भविस्सामि ॥१२४९ ॥ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only 5 10 15 20 25 www.jainelibrary.org

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