Book Title: Dharmvidhiprakaranam
Author(s): Shreeprabhsuri
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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अष्टमं सद्धर्मफलद्वारम्
भणइ सुओ सुत्तोऽहं, तइया अन्नो न को वि निल्लज्ज ! । ता नेउरं समप्पसु , मा विग्गुप्पसु जणे थेर ! ॥८७५।। वुड्डो जंपेइ जया, नेउरमाकरिसियं इमाइ मया । तइया गिहे पसुत्तो, आगंतुं पिक्खिओ सि तुमं ॥८७६।। अह दुग्गिलाइ भणियं, पिययम ! न सहेमि दूसण एयं । पत्तिज्जावेमि अहं, काउं दिव्वं पि किरियमहं ॥८७७॥ कुलजायाइ कलंको, सुसुरवयणं पि एरिसं मज्झ । मसिबिंदु व्व न सोहइ, सियम्मि पक्खालिए वत्थे ॥८७८॥ इह सोहणजक्खस्स वि, जंघामझेण नीसरिस्से हं । जंघंतरेण तस्स हि, नासुद्धो ईसरो गंतुं ॥८७९।। अह सविगप्पो सुसुरो, विगप्परहिओ पिओ वि तं तीसे । साहसमहानिहीए , वयणं पडिवज्जइ तहेव ॥८८०॥ तो न्हाऊण वहू सा, सियवत्था पुप्फधूवबलिहत्था । सयलजणप्पच्चक्खं, तं जक्खं पूइउं चलिया ।।८८१॥ तीसे जक्खस्स गिहे, गयाइ संकेइओ उववई सो । गहिलीहोउं लग्गो, कंठपएसे कवग्गु व्व ॥८८२॥ निक्कासिउं जणेणं, गलए धरिऊण एस गहिल्लु त्ति । न्हाऊण पुणो जक्खं, पूइत्ता सा इमं भणइ ॥८८३॥ नाह ! पई मुत्तूणं, पुरिसो न कयावि फरिसिओ अन्नो । गहिलो पुण मह कंठे, लग्गो इय तुज्झ पच्चक्खं ॥८८४॥ एयं पइं च मुत्तुं , अन्ननरो नाह ! जइ मह न लग्गो । ता होसु सुद्धिहेडं, सईई सच्चप्पिओ तं सि ॥८८५॥ चिंतेइ जाव जक्खो, धुत्ताए किं करेमि एयाए । ता तज्जंघामज्झेण, निग्गया दुग्गिला झत्ति ॥८८६।। तक्कालं चिय लोए , सुद्धा सुद्ध त्ति घोसणपरम्मि । गलयम्मि पुप्फमालं, खिवंति तीसे निवनिउत्ता ॥८८७॥
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