Book Title: Dharmvidhiprakaranam
Author(s): Shreeprabhsuri
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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अष्टमं सद्धर्मफलद्वारम्
अह नहसेणा जंपइ, पंचमभज्जा कयंजली नाह ! | थविरेव लोभमहियं, मा कुणसु अणत्थसंजणयं ॥ १०८१ ॥ पुव्वं कम्म वि गामे, थेरीआ बुद्धि-सिद्धिनामाओ । अच्वंतदुत्थियाओ, अन्नुन्नं सहिसमाओ य ॥ १०८२॥ तस्स य गामस्स बहिं, सच्चाहिट्ठायगो अइपसिद्धो । भोलगनामा जक्खो, अभिवंछियसिद्धिदो अत्थि ॥१०८३ ॥ अह सा बुद्धी. थविरा, दारिद्ददुमाणवाडिया तत्थ । तं आहइ जक्खं, सम्मं पइवासरं गंतुं ॥ १०८४ ॥ तब्भवणं भत्तीए, तिसंज्झमवि सा पमज्जए बुद्धी । ढोयइ य तस्स निच्चं, पूया पुव्वं च नेवज्जं ॥१०८५॥ तुह देमि किं ति तुट्ठो, जक्खो जंपइ तमन्नया थेरी । निच्चं सेविज्जंतो, कया वि तूसइ कवोओ वि ॥१०८६ ॥ अह सा बुद्धी जंपइ, जइ सच्चं मज्झ देव ! तुट्ठो सि । ता तह कुणसु जहा हं, सुहसंतोसेण वट्टामि ॥१०८७॥ जंपइ जक्खो थविरे !, इओ परं सुत्थिया तुमं होसु । जं मज्झ पायमूले, दीणारं पइदिणं लहसि || १०८८|| पइदिवसं दीणारं, पावंती तद्दिणाउ सा थविरा । जाया समहियरिद्धी, सजणाओ जणवयाओ वि ॥१०८९ ॥ जादिव्वालंकारं, थविरा सुमिणे वि नेव पिक्खंती । सा तं निवदेवी इव, खणे खणे नवनवं धरइ ॥१०९० ॥ जीसे य कंजियस्स वि, सद्धा कइया वि नेव पुज्जंती । पीणत्थणाउ तीसे, धेणूओ सहस्सो भव ॥ १०९१॥ जिण्णम्मि तिणकुडीरे, आजम्माओ वि जा सया वसिया । सा पासायं कारइ, चित्तगवक्खाइरमणीयं ॥१०९२॥ जा जीविया परगिहे, गोमयचायाइकम्मणा अह तं । दासीओ थंभट्ठिय-पंचालीउ व्व सेवंति ॥ १०९३ ॥
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