Book Title: Dharmvidhiprakaranam
Author(s): Shreeprabhsuri
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 383
________________ ३४८ 10 श्रीधर्मविधिप्रकरणम् जं जं इट्ठम्मिटुं , भुज्जं पावेइ सोलगो तं तं । किंचि वि तीसे देई, सेसं पुण अप्पणा लेई ॥११९८॥ तो तीइ वंचणाए, विहियाए आभिओगियं कम्मं । बंधइ सोलगो सो, वडवाजीवासमं तत्थ ॥११९९॥ अह पाविऊण मरणं, मूढो परुवंचणेण सो तेण । भमिओ तिरियगईसु , मग्गब्भट्ट व्व रण्णम्मि ॥१२००॥ तत्तो खिइप्पइट्ठिय-नयरे विप्पस्स सोमदत्तस्स । सोमसिरिकुक्खिभूओ, सोलगज्जीवो सुओ जाओ ॥१२०१।। सा घोडिया वि मरिउं, भवं च परिभमिय तम्मि नयरम्मि । संजाया वरधूया, कामपडागाइ गणियाए ॥१२०२।। मायापियरेहि सयं, पालिज्जंतो स दारओ अहियं । कणभिक्खाइ पमत्तो, कमेण सो जुव्वणं पत्तो ॥१२०३॥ हिययग्गठिया धरिया, सया वि धावीहि हारजट्ठि व्व । सा गणियापुत्ती वि हु , संपत्ता जुव्वणं परमं ॥१२०४।। वररूवजुव्वणाणं, सरीरसोहाकराण अन्नुन्नं । भूसिज्जमाणभूसण-भावो तीसे समो जाओ ॥१२०५।। अहमहमिगाइ इंता, नयरजुवाणो महिड्डिया सव्वे । तीइ च्चिय आसत्ता, भमरगणा मालईइ व्व ॥१२०६।। अच्चंतं अणुरत्तो, तीए सो सोमदत्तपुत्तो वि । नवरं अत्थविहीणो, सेवइ सुणउ व्व तद्दारं ॥१२०७।। निवमंतिसिट्ठिपुत्ता-इएहि इड्ढेहि सह रमंती सा । तस्स मुहं पि न नियइ, सो तं दटुं पि जीवेइ ॥१२०८।। तं निधणं वयणेण वि, सा न वि भासइ सइ व्व परपुरिसं । वेसाण सहावेणं, सधणे रागो न हि दरिद्दे ॥१२०९॥ अह सो विप्पकुमारो, पुव्वज्जियकम्मपेरिओ तइया । तइंसणसुहलोलो, भिच्चत्तं कुणइ तीइ गिहे ॥१२१०॥ 15 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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