Book Title: Dharmvidhiprakaranam
Author(s): Shreeprabhsuri
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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Jain Education International 2010_02
श्रीधर्मविधिप्रकरणम्
हरिसियबंधुजणजुया, वज्जिरआउज्जबहिरियदिगंता । कयदेवदिन्नतोसा, सा पत्ता ससुरभवणम्मि ॥८८८॥ जं नेउरगहणाओ, जाओ उत्तारिओ नियकलंको । इय तप्पभि लोओ, तं नेउरपंडियं भणइ ||८८९ || सुण्हामइपरिभूओ, तद्दिवसाओ वि देवदत्तो सो । वारीबद्ध व्व करी, जाओ चिंताई गयनिद्दो ||८९०॥ तं जोगियं व निद्दा - रहियं नाऊण नरवई तत्थ । दाउ जहिच्छवित्ति, करेइ अंतेउरारक्खं ॥८९१ ॥
अह एगा निवभज्जा, पुणो पुणो उट्ठिऊण रयणीए । पिक्ख तं पाहरियं, सुवेइ नो वि त्ति विन्नाउं ॥ ८९२ ॥ सो चितइ नियहिए, जाणिज्जइ नेव कारणं किंपि । जं उट्ठऊण एसा, पुणो पुणो मं निरिक्खेइ ॥८९३॥ मह सुत्तस्स इमा किं, कुणिही इय जाणिउं स पाहरिओ । नाडेइ कवडनिद्दं, नीहरिया सा वि हु पुणो वि ॥८९४ ॥ तो निभरनिद्दाए, तं सुत्तं जाणिऊण हिट्ठमणा । नियडगवक्खाभिमुहं, वच्चइ चोरु व्व पच्छन्ना ॥८९५॥ तत्थ य गवक्खहिट्ठा, अग्गलिओ रायवल्लहो हत्थी । अत्थि समत्थकरीसर - सिक्खाविक्खायमइविहवो ॥८९६ || तस्स य करिणो मिंठे, रत्ता निच्चं पि सा गवक्खाओ । संचारिदारुफलयं, ऊसारिय नीसरेइ बहिं ॥८९७ ॥ तो सुंडाए गिहिय, तेण सया मिंठसिक्ख ( क्खि ) यगण | सा मुक्का भूमीए, मिठो तं दद्रुमहरुट्ठो ॥८९८॥ अइकालं काऊणं, किमज्ज पत्ता सि इय भणिय मिठो । तं हत्थिसिंखलाए, निवभज्जं हणइ दासिं व ॥८९९ ॥ सा भणइ मा पकुप्पसु, अंतेऊरजामिओ नवो अज्ज । जाओ अइजागरुओ, सो न सुवइ तेण रुद्धा हं ॥ ९००॥
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