Book Title: Dharmpariksha Kathanakam Author(s): Saubhagyasagar Gani, Rangvimal Gani Publisher: Muktivimal Jain Granthmala View full book textPage 8
________________ XXXXXXXXXX ॥६॥ ॥७॥ भ्रमन्ममौ भूमा जिनमतसुबोधी घनगुणः, क्रियाधर्मोद्धारं प्रतिनगरमागे जनहितः तपोनिष्ठः कुर्वन् बुधजनमहामान्यचरितो, हृदा तडौ वन्दे गुरुदयदयावैमलमुनिम महाप्रीतिर्हृद्या दुरितगजयथार्जमृगपे, ह्यभूदस्यामोधे । जिनगृहमहावैमलगिरौ। जिनादेशग्राही भविजनमनोनीरजरवि, हुंदा तकौ वन्दे गुरूदयदयावैमलमुनिम् महानन्दः संघो विमलगिरिराजस्य बहुशो, यदादेशभक्तः कुगतिमुषि निष्काशित इह । धिया ध्येयः पुंसां सुमतिसरलो ज्ञानमहितो, हृदा तङ्को वन्दे गुरूदयदयावैमलमुनिम् रम्ये शुमे पुरवरे खुडलाभिधाने, सप्ताङ्कतचविधुवत्सरबाहुलाख्ये। मासे सिते रचितमष्टकमच्छदर्श पंन्याससंज्ञमुनिरङ्गमहोदयेन भक्त्याऽटक प्रतिदिनं भुवि यः शरीरी निर्दोषशुद्धमनसा प्रयतः प्रभाते । दिव्य पठेदिह परे सुखराशिभोक्ता जाजायते निजमनो बहुधा प्रमाणम् । २ समर्थमहिमा, ३ पृथिव्यां, ४ बलम् , ५ अमोधे, सफले, ६ कार्तिक पूर्णिमायां । ॥९॥ ॥१०॥ XXXXXXXXXXXXPage Navigation
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