Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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२५०
देचोबा कारीथया तेहथीमूलस्वरूपथीचुका एमथयो हवे एनोपलटणपणोा त्माकरे तोथाय तेकहे जे चेतनके० चेतना जेवारे साकार अना कारने यथार्थनासनकरीने पोतानासुस्वभानेरहे भासनषतीरुची ना आचरणपणोअंगीकारकरे तेवारे पुहिजसकल के ० एकारक निज के० पोतानो साधकनाव कर्मविदारण स्वरूपप्रगट करवा रूपनावने लहेके ० पामे एटले पहिजकारकते १ स्वधर्मका २ स्वधर्मपरिणम नकार्य ३ वधर्मानुजायी गुणपरिणति चेतनावीर्यसक्ति तेकरण ४सा धनगुणसक्तिनोप्रगटवो तेसंप्रदान ५ पूर्वपर्यायनोनिवर्त्तनतेअपादान ६वगुणनोआधारीपणो तेबाधार एमषटकारकसाधकपणोपामाने सिम ता परमोत्मतानु नबरंगसमाधि सकल निर्मल तानीपजाये इहांखधर्मअव लंबवानी नावनालि खेडे गाथा ॥ अहम्मिक्कोखलुसुघो॥निम्ममनना णदसणसमग्गो ॥ तम्मिविन तच्चितो ॥ सवेएएषयनेमि ॥ १ ॥ अहं
आत्मा अनंतगुणपर्यायरूप अनंतखधर्ममया तथाषव्यपणे अखंमपणे समुदायपणे एकळू वलि निश्वयनयथीसुधबु यद्यपीअनादिपरनावमां जुब्ध खनावनष्टथको असुधथयो तोपणखजातिथीमूलधर्मे अनंतझा नादिगुणमय निष्कलंक निरामयनिःसंग निर्दोष सर्वममकार पर भावमाहारापणाथीरहितबुझानसकलनासन परिजेदनरूप दर्शनसामा न्योपयोगतेहिजमटी एहवानासन रमण परिणमनरूप एमात्मारह्योथ को सर्वपरोपाधीने दयकरी स्वसुधस्वरूपनेग्रही सर्वपरनावनेदकरी नि मलानंदनीपजावे ॥ इतिषष्ठ गाथार्थ ॥ ६ ॥
माहरूंपूर्णानंदप्रगटकरवानगीरे॥प्र० ॥ पुष्टालंबनरूपसेवअनुजीतणीरे॥से ॥ देवचंजिनचंनगतिमनमेंधरोरे॥ना अव्याबाधअनंतअदयपदआदरोरे। अ०॥ ७॥
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