Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 191
________________ प्रनंजना निसिज्जाय ॥अयश्रीप्रनंजनानिसिजायलिख्यते ॥ नाटकीयानीनंदनी एदेशी॥ गिरिवैताढ्यनेकपरे ॥ चक्रांकानयरीलो ॥ अहोचकांका ॥ च क्रायुधराजातिहां ॥ जीत्यास विवटारीलो ॥ अहोजीत्या ॥१॥ म दनल तातसुशुंदरी ॥ गुणशील अचंभालो ॥१०॥ पुत्रीतासपनंजना॥ रूपेरतिरंनालो ॥ अ० ॥ २ ॥ विद्याधरजूचरसुता ॥ बहुमिलिश्कपते लो॥ अ || राधावेधमंमाबीयो ॥ वरवरवाखंतेलो॥ १० ॥ ३ ॥ कन्याएकहजारथी ॥ प्रभंजनाचालीलो॥ ॥ आर्यखममांआव तां ॥ वनखमविचालिलो ॥ अ॥४॥ नियंथीसुप्रतिष्टता ॥बहुमुणणी संगेलो ॥१०॥ साधुविहारेविचरतां ॥ वंदिमनरंगलो ॥ १० ॥ ५ ॥ आ-पूजेएवमो॥ ऊमाहोस्यो लो॥ अ. ॥ विनयकन्यावीनवे ॥ वरवरवाडेलो ॥ ॥६॥ एस्योहितजाणोतुझे ॥ एथीनविसिचिलो। अ० ॥ विषयहलाहल विषतिहां ॥ सीअमृतबुधिलो॥ ॥ ७॥नोगसं गकारमांकह्या ॥ जिनराजसदाश्लो॥अ॥ रागषसंगेवधे ॥नवत्र मणसदाश्नो॥ ॥॥राजसुताकहसाचए॥जे भाषोवाएगीलो॥१०॥ पिणएभूल अनादिनी ॥ किमजाएमागीलो ॥॥॥ जेहतजेतेध न्य | सेवक जिनजीनालो ॥१०॥ अमेसतपुजलरसरम्या॥मोहेलय लीनालो ॥ अ॥१०॥ अध्यातमरसपानथा ॥ पानामुनिराटालो। अ० ॥ तेपरपरणतीरतीतजी ॥ निजतत्वेसमाटालो ॥ ॥ ३॥ अम्हने पिणकरवोबटे ॥ कारणसंटोगेलो ॥ १० ॥ पिणचेतनतापर णमे ॥ जमपुजलनोगेलो ॥ १० ॥ १२ ॥ अवरकन्यापणकचरे ॥ चिंतितहवेकी जेलो ॥ अ० ॥ पबिपरमपदसाधवा ॥ नद्यमसाधिजे लो ॥ ॥१३॥ प्रजनाकहेहेसखी ॥ एकाटारपाणलो ॥ धरमप्रथमकरवोसदा ॥ देवचंदनीवाणीलो ॥ १० ॥ १४ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226