Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 198
________________ २०६ बुटकस्तवन सज्जायो देख परारीत करावेहोसुरे ॥ जपीयानजाय जिनराज ॥ जीवमातों सुंरे || पूर्वपुयप सायन रतनलायोरे | आदेसरसरखादेव || दुर्लन पायारे ॥ तेत ज्यातिर्थंकरदेव || बीजानेजोवेरे ॥ ज्ञांनरतनकीगांठ ॥ समजविनखोवेरे ॥ जुवीजगतकी जोम ॥ जीवगेरिलेतोरे ॥ नर नवमेलागेखोम | चेतनचेतोरे || सुखदूखनाफल होए || करमकोंटा लोरे || समकितश्रवाकीरीत || रूमीपालोरे || युंसमजावेजिनदास || मनमोच्यापनोरे ॥ जिनराजनजनविनजाय ॥ जनमज्यं सुपनोरे ॥ तजुतजुभेन एकुगुरुकुं ॥ कनककांमनीधारी हे ॥ ज्ञांनध्यानकीवात नजाऐ || घ्यावकरमसुंनारी ॥ त ० ॥ १ ॥ करकोपीन ननूतन पेटी ॥ सीरपरजटावधारीह ॥ कांनफमामुद्रापेहरता || उनकेघरमेना हे || त० ॥ २ ॥ जागी होकरजीववणासे ॥ वेमदमांसाहारी ॥ कू मापंथी जगकुंकरता ॥ मुखस्तक हेयाचारी हे ॥ त० ॥ ३ ॥ केला गुलकुगुरुकाकंबल || साधन ही संसारी हे || आप डूबेन रकुडुबावे || 5 रगतकाच्यधिकारीहे ॥ त० ॥ ४ ॥ समकित श्रदाजैनधर्मकी || नही कु गुरुकुं प्यारी || जिनवर सुंजिनदास विनवे ॥ कुगुरु संगखवारी हे ॥ त ० ॥ || ५ || इतिपदं ॥ ४ ॥ नमुनमुमेगुरू निग्रंथकुं || वेजनमुदाधारिहे || पुल उपर प्रेमनकर ता || मनकीममतामारी || न० ॥ १ ॥ गरनगाल कर गुप तिगोपवे ॥ गतनिग्रंथकीन्यारीहे ॥ कनककांमनीकेनहीनोगी ॥ तेपुराब्रह्मचारी हे ॥ न० ॥ २ ॥ वेकाया केजीवनाथी ॥ उनकुंनिहितकारीहे ॥ करम काटकर केवलध्यावे || ज्ञानग्रंथ गुणनारीहे ॥ न० ॥ ३ ॥ सुधश्रधा सुंसुमतिसेवे ॥ निजच्यातमकुंतारी ॥ करजोमी जिनदास विनवे ॥ मे रीजिनचरसुंयारी | न० ॥ ४ ॥ इतिपदं ॥ ५ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226