Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 215
________________ चेतन्यकर्मचरित्र २१३ यहपरमत्तदेस हेंसही ॥ मोकुसुमनअगान कही ॥ अबकबुएसोंकिजें काज ॥ जासुंहोश्अप्रमत्तराज ॥ १३ ॥ सत्ताईसमूल गुनधरें ॥ बारहनेदतपस्या करें ॥ सहेपरीसवीसअरुदोय ॥न नटादयापालें मुनि सोय ॥ १४ ॥ इहविधिलेंअप्रमतराटा ॥ तबमोहनिजदासपगटा ॥ पकरिमंगावेकरिबहूमांन ॥ तव हंसचिंतेनिजग्यान ॥ १५ ॥ यहतामो हकरेबहूजोर ॥ मोरहननदेवं हिंदौर ॥ अबदाकोंमें निष्टित करों ॥ अप्रमत्तमेंतवपगधरों ॥ १६ ॥ तवहंसथिरताअन्यास ॥ किधिध्यान अगनिपरगास || जारीसकतिमोहकीकई ॥ महाजोरतेनिरबल नई ।। १७ ॥ हंसल मेंनिजबलपरगास ॥ कानोअप्रमत्तपुरवास ॥ सुभटती नमोहकाटरे॥ अरुपरमादसवेंअपहरें ॥१७॥तज्योआहार विहार विला स ॥ प्रथमकरण कीनोअन्यास ॥ सत्तमपूरके अतीअनूप | करेकर्ण चारित्रसरूप ॥ १७ ॥ आयसंगमोहदललेय ॥ वेकबुजोरचले नही जेय॥अवनिअष्टमपूरपगधरे॥मोहसंगगुप्तीअनुसरे ॥ २०॥ करेकरणचै तनहतानं ॥ उजोकझोअपूरवनावं ॥जेकबहूनहिनयेपरिणाम॥तेएहिप गटेअष्टमनाम ॥ २५ ॥ अबचैतननोंमेपूरआटा ॥ जामेथिरताबहूत कहाटा ॥ पूरवनावचलहिजेकही । तेइहथानकहाले नहीं ॥ २२ ॥ हविधिकरणतीसरोकरे ॥ तबमोहनृपचिताधरे ॥ इहतोजीतीसिवपूर जाय ॥ मेरोजोरनकबुवसाय ॥ २३ ॥ ॥दोहा॥ मोहसैनसबजोरिकें ॥ कीनोएकविचार॥ परगट नोबनेनही । य हमारेंनिरधार ॥ १ ॥ तातेसुनटलुकायतुम || रहोपूरनकेंमाहिं ॥जो कबहूंआवंदाव में || तोतुमत जीयोनाहिं॥ २ ॥ मेरहूंसकतिबिपायके । रहेंउरलोंजाय ॥ जोजीव तुमचहेंकहूं ॥ तोतुममिलिहाय॥ ३ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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