Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
२१४
चेतन्यकर्मचरित्र नगरनामनपशांतपूर॥ तहांलोमेरोजोर ॥ जोआहेमादावमें ॥ तोमेक रहूंसोर ॥ ४ ॥ तुमहसबजनदौरिकें ॥ आटामिलोंगेधाय ॥ तबए हसहिपकरिके ॥ देहेंनलीसजाय ॥ ५ ॥ इहबिचारसबसें नसों ॥ की नोमोहनरेस ॥ रहोगुप्तदबिदबिसवें ॥ करीकरीनपसमनेस॥ ६ ॥
॥चौपाई॥ चैतनचरचलायेबहूनर ॥ पकरे मूढमोहकेचोर ॥ जनबत्तीसग हतत काल ॥ मुर्जितिकरचल्योदिनदयाल ॥ १॥ सुदमसंपरायकेदेस।।
आयकीयोचेतनपरवेस ॥ तेहथानकएकलोनकुमार ॥ जातिकियोमू बित तिनवार | २ || आगेपाननिसंकितधरें।अबवेरीमोसुकोलरे ॥ में जीतेसबकमकवोर ॥ हविधरयो निसंकितजोर ॥ ३ ॥ जोनपसांत मोहकेदेश ॥ हठमांहिकानोपरवेस ॥ तबेजुंमोहजोरनिजकरें ॥ चेतनप करिनल टइति गिरें ॥ ४ ॥ आएसुनटमोहकेदोरि ॥ मूर्चितलिपेरहेंजि हिंतोरि ॥ पकरिहंस मिथ्यापूरमाहिं ॥ ल्याटोकूरसबेंगहिबाहिं ॥ ५ ॥ इहानकबुनिहिचैरहवात ॥ उतकिष्टेक हिंटातविख्यात॥ औरोंथानिक हेंबहुज हां। चेतनाटावसतहेंतहां ॥६॥ उपसमसमकितजाकोंहोय॥ मिथ्यापूरलोंआवेसोय॥ ख्यायकसम्यक्वंतकदाच ॥उपसमश्रेणिचढे जोराच ॥ ७ ॥ तोवहचोथोपुरलोआटा । गिरतेरहेंइहांव्हराय ॥
औरथांनकन परगहें ।। दोनसम्यक्वंतजुरहें ॥ ७॥ अबमिथ्यापुरमें: खदेटा ॥ मोहबलीवेतनकोंजेटा ॥ नानावि विधसंकट अन्यानः। सहे परीसहयहगुनवान ॥॥ पंच मिथ्यात्वनेदविस्तार ॥ कहतन मूरगुरपा वहिंपार ॥ सादिमिथ्यातनांमजियल हें ॥ ताकेंनदैकौनपुःख स हें ॥ ॥ ५ ॥ सोंःखजांनचेतनराम ॥ केजानेकेवल गुणधाम ॥ कहतनल हिंयैपारावार || ःखसमुश्यतिअगमअपार ॥ ११ ॥ एहि विधिसही कर्मकीमार ||अबचेतननिजकरेसनाल॥ व्यक्षेत्र सुकाल नौ नाव ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226