Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 196
________________ १९४ बुटकस्तवन सज्जायो चिंतामणी तुंहिंमुऊसुरतरू || कामघटकामधेनु विधाता || सकलसंपती करूबीकट संकटहरू || पासमंमोवरोमुगतीदाता || तार 11 2 11 पुन्यनरपूरच्छंकूरमुजजागी || नाग्यसोभाग्यमुखनूरवाध्यो || सफ लवंगी फल्योमाहरो दिनवल्यो || पासमंकोचरोदेवलाधो ॥ तार० ॥ ३॥ धन्यमरूदेसमंमोवरानवरी ॥ धन्यधनायोधानारीनौका || धन्यतेध न्यधन्यकृतपुण्यते ॥ पासपूजेस बाजेहजोका || तार० ॥ ४ ॥ पासमुक प्रीती तुसुंबी || विबुधवर काहानजीगुरुवखांणी || मुक्तिसुखच्या पजोच्यापपदथापजो ॥ कनक विजयच्या पलोनक्त जाली ॥ ता ॥ ५ ॥ इति ॥ अथ पुण्यनिसिज्जायलिख्यते ॥ पुण्य कर पुण्य कर पुण्य करप्राणीयां ॥ पुष्य करतांसयल कचिदृषि ॥ क नकनी को मकरजोमिकाया कहे॥ ला बिलीलाल हे धर्मबुधि ॥ ० ॥ १ ॥ पहाट दोहटबोमिबोकरप || यतिणुमनतपापं ॥ तासंता पयालापपरिहरिपिन || पंचपरमेष्टिपदसमरजापं ॥ पु० २ ॥ तुमुऊकंत कामिनिता || || माहसीख सुलिकांनजागे || मुकमतिमांमता अशुभ गतिकता || धर्मकरतांकि सिलागलागे ॥ पु० ॥ ३ ॥ मुऊमतिवाह लाधैर्यधरनाहला ॥ थोमलावयच्यवधारमोरा || सुधगुरुदेवपयसे वकरताना || आप लिखांतिकारी मकर नोरा ॥ पु० ॥ ४ ॥ सेल मिसरससाकरसमावयसुलि || आपनोमन करोमुक्तिवरवा ॥ काय कामनित सीखनारतो || प्राणिनघसमस्योधर्मकरवा ॥ ० ॥ ५ ॥ उगतेना सुवखाणसह गुरुतली || वालिनिजकानहितलाश्चाखे ॥ जं घयाल सहरे प्रान नवतरे ॥ परमपदवीवरे प्रीतिनाषे ॥ ० ॥ ६ ॥ इति || श्री नाती लिख्यते ॥ श्रीमरुदेवातनुजन्मानं ॥ मानवरत्नमुदाररे || दारैः सहहरि निकृत से वं ॥ सेवकजनसुखकाररे || श्री || १ || कारण गंध मृते पिजनानां ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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