Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 204
________________ २०२ चेतन्यकर्मचरित्र ॥सोरग॥ - कहाबिचारोमोह || जेहिन परतमचढतुहो॥नेजोसेवकसोह ॥ जी वतिलावेपकरिके ॥ १ ॥ कहेचेतनसुणझान ॥ उहिंघरयोपुराय के ॥ कहोयहकोनसयांन ॥ रहियेघरमेबैठके ॥ २ ॥ सूरहिंयहन हिरीत ॥ अरिआएघरमरहे ॥ कैहारेकैजीत ॥ जेसीव्हतैसीबने॥३॥ कहेझानसुनसूर ॥ तुंमजोंकझोसोसाचहै ॥ कहाबिचारोकूर ॥ जे हिंनपरतुमचढतुहै ॥ ४ ॥ ॥पक्षमीबंद ॥ तबजीवकहेटाहसुनहुंज्ञांन ॥ तुमलाटाकनाहीयहसयांन ॥ वह मिथ्यापूरकोहैनरेस ॥ जहिबेरेअपनोसकलदेस ॥१॥ जाकेसंगसूर हैअनेक ॥ अज्ञाननावसबगहेटेक ॥ रागरूक्षेषमंत्रीसरसेह ॥ क्षिण मेसबसेनाकरहिंजेह ॥ २ ॥ बसेसोगढजाकेअटुट ॥ विचमसीपाईहेज टाजुट ॥ विषयासीरानिजसुगेह ॥ सूतजाकेसूरकपाटाजेह ॥ ३ ॥ सेनापतिचारोहैअनंत ॥ जिहिंघरयोअवतपूरमहंत ॥ व्रतनामलीनेदे सच्चीन ॥ परमतहिंदोहाश्ायकीन ॥ ४ ॥ इहविधिघरेसबदेसजेह॥ चढिआयेफोजेल गीतेह ॥ तामेनृपआपअनंतजोर ॥ बलजासुनपारा बारबोर ॥५॥आयूधजाकेचमचक्रहाथ॥बहूधाराजासुंउपाधिसाथ॥ माहानागपास विद्याअनेक ॥ बंधसत्तरिकोमाकोमोटेक ॥ ६॥ बाणा दिकमहाकठोरभाव ॥ जेहिंलगेबचेनरिकराव ॥हविधिअनेकहथी यारधार ॥ कोहूनामकहतनहिलैपार ॥ ७॥ यहमोहमहाबलवंतनूप ॥ तुमग्याताजाणोसबसरूप ॥ कैसेकहोइनसोच्योजाटा ॥ तुमस्यानेहो यनचूकहूंदाय ॥ ७ ॥ ॥सोरग॥ तबबोलेंयोंज्ञान ॥ जीवतुमेसाचीकही ॥ मेरेमनग्नमांन ॥ तुम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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