Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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बुटकस्तवनसज्जायो नानासुखदातारंरे ॥ तारस्वरवररसपरिपुष्ट | पुष्टशमाकुपारंरे॥श्री ॥ ॥ २ ॥ पारंगतमिहजन्मपटोधे ॥ यो हितगुणधीररे ॥ धीरसमुहेःसं स्तुतचरणं ॥ चरणमहीरुहकीररे ॥ श्री० ॥ ३ ॥ कीरनसंटात्साजि तचं ॥ चंचामल गुणवासरे ॥ वासवझदयकजाहिमपादं ॥ पादपमि वसबायरे ॥ श्री० ॥ ४ ॥ सन्नाटाकबरपुरधरणी ॥ धरणीधवमितकां मरे ॥ कामनमतसुलक्षणनानि ॥ नानितनुजमुद्दामरे ॥ श्री० ॥ ५॥ स्वतीर्थपतिस्तुतःशतमखश्रेणीस्तुतश्रीनदी ॥ जीमतोद्नंतनाग्यसेवधिर विक्षिप्तसमग्रेर्गुणैः ॥ श्रीमन्ना निनरेंजवंशकमलाकेतुर्नवांनोनिधौ ॥ से तुःश्रीषनोददातुविनयस्वीयंसदावांनितम् ॥ १॥ इतिसंपूर्ण ॥
॥अथजिनदासलटकपदलिख्यते ॥ ककरकुंसकरकरमाने ॥ ऐकुमतीकीबाताहे ॥ धाकधतुरावेलपा तसुं ॥ पूजत शिवरंगराताहे॥ आंगदानदेतासीवमत्तमे ॥ नरनारिका नाताहे ॥ क ॥ ५ ॥ चंमीजीवकागलाकटावे ॥ लोककहेएमाता हे ॥ ताकुपूजमगनमनमोहन ॥ सोनरनरकेजाताहे ॥क० ॥ २॥ कुगुरुसुपरनवजःखपामे॥ नही तिल भरएकसाताहे। कुदेवकुंचेतनयुसेव त ॥ हिंसाधर्मःखदाताहे ॥ क ॥३॥ कुगुरूत्यागसूगुरुनिजसेवे। नितनिग्रंथगुणगाताहे ॥ जिनवरगुणजिनदाशव खाणे।। एमुक्तिकाखाता हे ॥ क ॥ ४ ॥ इतिपदं ॥ ५ ॥
सरसनावसमकेतकोतजामो। कुगुरुसुमनराचारे॥पगसुबंधगमान घुघरा ॥ नर्कवीचमेनाचारे॥ जैनधर्मजगसाचारे॥१॥सुपवरूपिजी वनिजतेरा || लोनलगामालाचारे ॥ जपतपज्ञानध्यान नहीं दिलमे। खायखायतनमाचारे ॥ जै ॥ २ ॥ संजमसाटासीताईस सत्रे ॥ तुं कायरक्योंकाचारे || कहेजिनदासनावकरसुनजो ॥ सुधजिनवरकी वाचारे ॥ जै० ॥ ३ ॥ इतिपदं ॥२॥
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