Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 192
________________ ए. प्रनंजना निसिज्जाय ॥ ढाल ॥जी॥ ढुंवारीधनातुऊजाणनदेश॥ एदेशी॥ कहेसाहुणीसुणकन्यकारे ॥ धन्या ॥ एसंसारकलेश ॥ एहनेजेहि तकरीगणेरे॥ध ॥ ते मिथ्याआवेसरे। सुझानीकन्यासांनल हितनपदेश। जगहितकारीजिनेश ॥ कीजेतसुआदेशरे॥सु० ॥ सांभल ॥१॥ खरमोनेजोधोएबुरे ॥ क० ॥ तेहनशिष्टाचार ॥ रत्नत्रयीसाधनकरो रे ॥ क. || मोहाधीनताबाररे || सु० ॥ सां० ॥ २ ॥ जेपुरषवरवा तणारे ॥ क० ॥ श्बाबे तेजीव ॥ सेसंबंधपणेनकोरे ॥ क० ॥ धारी काल सदीव || सु० ॥ सां० ॥३। तवप्रभंजनाचिंतवेरे ॥ अप्पा० ॥ तुअनादिअनंत ॥ तेपणमुऊसत्तासमोरे ॥ अ० ॥ सहजअकृतसुम हंतरे || सु० ॥ सां० ॥ ४ ॥ भवनमतास विजीवधीरे ॥ १० ॥ पा म्यासविसंबंध ॥ मातापिताचातासुतारे ॥१०॥ पुत्रवधुप्रतिबंध ॥सु. सां० ॥ ५ ॥ स्योसंबंधकहुंहारे ॥ १० ॥ शत्रुमित्रपणथाटय ॥ मित्र शत्रुतावलील हेरे ॥१० ॥ श्मसंसरणखनाव ॥सु० ॥सां० ॥६॥ स त्तासमस विजीवबरे ॥ १० ॥ जोतांवस्तुस्वभाव ॥ एमाहरोएपारकोरे।। छ || सविआरोपितनावरे ॥ सु० ॥ सां॥७॥ गुरुणीआगल एह बुरे ॥ १० ॥ जूनूकेमकहेवाय || स्वपरविवेचनकीजतारे ॥१० ॥ माहरोकोश्नथाटारे || सु ॥ सां० | 5 || नोग्यपणोपणनूल थारे ।। १०॥ मानेपुजल खंध ॥ हुंनोगीनिजनावनोरे ॥ ॥ परथीनहिष तिबंधर ॥ सु० ॥ सां ॥ ए ॥ सम्यक्झानेवे हिचत्तारे ॥ अ० ॥ हूं छामहूर्तचिदूप ॥ कर्त्तानोक्तातत्वनारे ॥ १० ॥ यक्ष्यअकिटारूप ॥सु ॥ सां० ॥ १० ॥ सर्व विनावथकीजुदोरे ॥ १० ॥ निश्चयनिज अनुभूति ॥ पुर्णानंदीपरमपूरे ॥ अ० ॥ नहिपरपरण तोरी तिरे ॥ सु सां ॥ ११॥ सिघसमोएसंग्रहेरे ॥ अ॥ पररंगेपलटाय ॥ संगां Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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