Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 170
________________ १६८ दे०चो०वा० नाच्यागरबे अनंतयात्मगुण उपजवानाधामले खसंपदानाच्छाधिपती बे सुखनासागरबे जे अतिंद्रिय स्वाधीन निरामय निःप्रयास विनासी सुखना समुबे निःसंगसुखनापात्रले केवलज्ञानरूप वयरके० वज्यते हीरो तेहनगर सदासर्वदा प्रभुतुमेसवाट्याबो एश्री पार्श्वनाथस्वा मीनीसुता ज्ञाननीयथार्थता विकलता वीर्यनीतीव्रता वीर्यनीतिक्षण तातेधाराबे च्ाने चारित्रनीएकताते पुवलथीप्रेरणाबे तथा ज्ञानतेप्रका स देखामल्हारबे तेमाटे एमले जमोडे को कहेसे सम्यक्दर्शनकां नको तेहने उत्तरजे ज्ञान दर्शनयुक्त नेजकहेबे ज्ञानमध्ये दर्शन नोए कपलो तथा तपतेवीर्यनीतिलताकहीले उक्तं चच्छावस्यकनीर्युक्तौ नाएपयास गंसोहगो उतवोसंयमोन गुत्तिकरो तिएहासमाऊगो मोरुखो जिनसासनी ॥ १ ॥ एटले सुछता एकता तिक्षणताथी मोहरि पुनेने एटले ज्ञानचारित्रतथातप नाबले मोहादिककर्महलीने ज टानोपमहोबजाव्यो इतिप्रथमगाथार्थ ॥ १ ॥ वस्तुनिजनावत्र्य विनासनीकलंकता ॥ परपती' वृत्तिताकरीने दें ॥ नावतादात्मतासक्तिनुल्लास थी | संतती योग वेदे ॥ स० ॥ २ ॥ अर्थ ॥ हवे सुछतादिकनोख रूपक हेबे वस्तुजे जीवादिकव्यते हनाजेनिज के० पोतानानावते गुणपर्यायरूप उत्पादव्यय परिणति नो अविनासके० जावो तेपए निकलंक एटले एकांतताच्य यथार्थता उनता अधिकतारहीत सम्यक्ज्ञानते सुधताकहीजे तथा परिए तिजे जीवनो६मूल परिणामते खरूपनेविषे एकत्वपलो परनावमापे से नही एयात्मानीपरिति अने संसारीजीवने विभावरंगीने ते मूलपरिणतितो चारित्रमोहे वृत्त तेथीयत्तिजे प्रवृत्तितेरागी घेषी पुफलभोगी पो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226