Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
१७२
पाचभावनानोस्तवन ॥ अथश्रीदेवचंजीकृतसाधुनीपांच नावनालिख्यते॥
॥दोहा ।। खस्तिश्री मंधरपरम ॥ धरमधामसुखाम ॥ स्याहादपारिणामधर ॥ प्रणमूचेतनराम ॥ १ ॥ महावीरजिनवरनमी ॥ नषबाहुसूरीश ॥ वंदीश्रीजिननजगणि ॥ श्रीदे मुनीश ॥ २ ॥ सदगुरुशासनदेवनमी। वृहत्कल्पअनुसार ॥ सुचनावनासाधनी ॥ नाविशपंचपकार ॥ ३ ॥ इंजीयोगकषायने ॥ जोपेमुनीनिसंग ॥ इणजीतेकुध्यानजय ॥ जाए चित्ततरंग ॥ ४ ॥ प्रथमभावनाश्रुततणी ॥ बीजीतपतियसत्व ॥ तुरि यएकतानावना पंचमनावसुतत्व ॥ ५ ॥ श्रुतनावनमनथिरकरे ॥ टा लेनवनोखेद || तपनावनकायादमे ॥ वमेवेदकमेद ॥ ६॥ सत्वनाव निर्नादशा ॥ निजलघुताएकनाव ॥ तत्वनावनाथात्मगुण ॥ सिघ साधनादार ॥ ७ ॥ ॥ ढाल र ली। लोकसरूपविचारोअतमहितनगीरे ।।
॥एदेश।।। श्रुतअन्यासकरोमुनिवरसदारे ॥ अतिचारसहुटालि ॥ हिनअघि कादरमतनचरोरे ॥ शब्दअर्थसं नालि ॥ श्रु० ॥ ॥ सुदमअर्थ अगोचरष्टियारे । रूपीरूपविहीन ॥ जेहतातअनागतवरततारे॥ जाणेझानोलीन ॥ श्रु० ॥ २ ॥ नित्यनित्य एकअनेकतारे ॥ स दसदभावस्वरूप ॥ बएनावएकव्येपरणम्यारे ॥ एकसमेमेअनूप॥श्रु०॥ ॥३॥ नत्सर्गेअपवादपदेकरीरे ॥ जाणेस हुश्रुतचालि ॥ वचनविरोध निवारेयुक्तिथीरे ॥ थावेदूषणटालि ॥ श्रु० ॥ ४ ॥ ६व्यार्थिकपर्या यार्थिकधरेरे ॥ नयगमनंगअनेक ॥ नयसामान्य विशेषेतेनहेरे ॥ लो कअलोकविवेक ॥ श्रु० ॥ ५॥ नंदीसुत्रेनपगारीकझोरे ॥ वलीअसु
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226