Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
पाचनावनानोस्तवन
१७३ चाताम || अव्यश्रुतनेवांद्योगणधरेरे ॥ भगवईछंगेनाम ॥ श्रु० ॥६॥ श्रुतअन्यासेजिनपदपामिएरे ॥ तेषंगेसाख ॥ श्रुतनाणीकेवल नाणी समोरे ॥ पनिवणिज्जेनाप ॥श्रु० ॥ ॥ श्रुतधारीआराधकसर्वनोरे॥ जाणेअर्थखनाव ॥ निजबातमपरमातमसमयहेरे ॥ ध्यावेतेनयदाव ॥ श्रु० ॥ ७ ॥ संयमदर्शनतेझानेवधेरे ॥ ध्यानेशिवसाधत ॥ भवख रूपचौगतनोतेलखरे ॥ तिणेसंसारतजंत ॥ श्रु० ॥ए ॥ इंख्यिसुखचं चलजाणीतजेरे ॥ नवनवअर्थतरंग ॥ जिमजिमपामेतिममनकल से रे ॥ वसेनचित्तथनंग ॥ श्रु० ॥ १० ॥ कालघसंख्यातानानवल खेरे ॥ उपदेशकपणतेह ।। परनवसाथीअवलंबनखरोरे ॥ चरणवि नाशिवगेह ॥ श्रु० ॥ ११ ॥ पंचमकालेश्रुतबलपणघट्योरे ॥ तो पणएआधार। देवचंजिनमतनोतत्वारे॥श्रुतशंधरजोप्यार॥१०॥१२
॥ढाल जी॥ कुंवरश्स्योमनचिंतवेरे॥ एदेशी॥
रयणावलोकनकावली ॥ मुक्तावलीगुणराण ॥ वज्जमध्यनेजवम ध्यए ॥ तपकरिनेहोजीपोरिपुमयण ॥ नविटाणतपगुणादरोरे॥६॥ तपोजेरेगजेसहुकर्म ॥ विषयविकारसहूटलेरे ॥ मनगंजेरेनंजेनवन में ॥ नवि० ॥२॥ जोगजाष्टिाजयतहा ॥ तवकर्मसूमणसार ॥ वहांणयोगऽहाकरी | सिमसाधेरेसुधाचणगार ॥ नवि०॥३॥ जि मजिमप्रतिज्ञापढथको ॥ वेरागीयोतपराय ॥ तिमतिमअंसुनदलबी जे ॥ रवितेजेरेजिमसीतविलाय ॥ नवि० ॥४॥ जेनिकुपमिमाआद रे ॥ आसणअकंपमुधीर || अतिलीनसमतानावमे तणनीपरेहोजा एतशरीर ॥ नवि० ॥ ५ ॥ जिणेसाधुतपतरवारथी ॥ सुमयोमोहगयं द ॥ तिणेसाधुनोहुंदास ॥ नितवं उरेतसपटाअरविंद ॥ नवि० ॥ ६॥ आयारसूगमाअंगमे ॥ तिमकह्योनगवैअंग॥ ऊत्तरायणगुणतोसम॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226