Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 188
________________ १७६ पांचनावनानोस्तवन तोपाणगबवासीपणेरे ॥ गणगुरुपरे नेहरे ॥षा || २ ॥ वनमृगनीपरेते हथोरे ॥ बोमीसकल प्रतिबंध ॥ एकाकीअनादिनोरे ॥ किणी तुज संबंधरे ॥प्रा० ॥३ ॥ शत्रुमित्रतासर्वथोरे ॥ पामीवारअनंत॥ कुणस जनउस्मनकिस्युरे ॥ कालेसहुनोअंतरे ॥ प्रा० ॥ ४ ॥ बांधकर्मएए कलारे । नोगवेपण एक ॥ कुणकपरकुणवातनीरे॥रागक्षेषनाटेकरे॥ पा० ॥ ५॥ जोनिजएकपणोगहेरे ॥ नोमीसकलपरभाव ॥ सुधातम झानादिसुंरे ॥ एकस्वरूपेनावरे ॥ पा० ॥ ६ ॥ आव्योपणतुंएकलो रे ॥ जाशपणतुंएक ॥ तोएस कल कुटुंबधीरे ॥ प्रीति किसीअविवे करे ॥ प्रा० ॥ ७ ॥ वनमांगजसिंहादिधीरे ॥ विहरतानटलेजह ॥ जिणासणरविबाथमेरे ॥तिपासणनिशीले हरे ॥प्रा० ॥ ७॥ तपपा रणआहारयहरे ॥ करमालेपविहीन | एकवारपाणीपीवनेरे ॥ वनचा रीचित्तअदानरे ॥प्रा० ॥॥ एहदोषस हुपरतणोरे ॥परसंगेगुणहांण॥ परधनग्राहीचोरतेरे ॥ एकपणेसुखखाणरे ॥ प्रां० ॥१०॥ परसंटोग थीबंधजेरे ॥ परवियोगथीमोख ॥ तिणतजिपरमेनावमोरे ॥ एकपणे निजपोषरे ॥ पा० ॥१६॥ जनमनपाम्योसाथकोरे॥ साथनमरशेको य ॥ उखवेहेचान कोनहीरे ॥ क्षणभंगुरसहुलाटारे ॥ प्रा० ॥१२॥ परिजनमरतोदेखोनेरे ॥ शोककरेजनमूढ ॥ अवसरवारेआपणोरे ॥ स हुजननाएढरे ॥ प्रा० ॥ १३ ॥ सुरपतिचक्कीहरिहलारे ॥ एकलाप रनवजाय ॥ तनधनपरिजनसहुवलारे ॥ कोईसखाश्नथायरे ॥ प्रा. ॥ १४ ॥ एकातमामाहरोरे ॥ नाणदर्सनगुणवंत॥ ब्राह्मयोगस हुआ वरजेरे ॥ पाम्यावारअनंतरे ॥ प्रा० ॥१५॥ करकंडूनमिनेगाश्येरे ॥ उमहप्रमुखऋषीराम ॥ मृगापूत्र हरिकेशिनारे॥ वंदृहुंनितपायरे॥षा ॥ १६ ॥ साधुचिलातीसुतनलोरे । वलीअनाथोतम ॥ श्मगुणमुनि अनुमोदतारे ॥ देवचंसुख दे मरे ॥ प्रां० ॥१७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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