Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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श्रीपार्श्वनाथ जिनस्तवन जायीपणे वीर्यनोविकार तेरागध्वेषरहितपणेथये वीर्यसुच्चाटा तेवारे खवार्यबले परिणामिक थयाने एटले स्वपरिणामिकतानाकर्ताथटीने परमनत्कृष्टअक्रिटापणारूप अमृतनोपानकरयो एटले विनावकर्ता तथा साधकरूपकर्ततातजीने अकंप अचल वोपणे हेपरमेश्वरतुमे चक्रिटथया इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥
सुचताअनुतणीआत्मनावरमे॥ परमपरमात्म तासच्याए ॥मिश्रनावअत्रिगुणनीनिन्न
ता॥ त्रिगुणएकत्वतुजचरणआए ॥ स० ॥५॥ ___ अर्थ ॥ एहवीसुछता निरावरणता अनंतगुणभोगीपणो एहवीप्रनु ता तेआत्मनावे पोतानेयात्मपणेरमे एटलेषनुनीप्रभुतानो रंगीजेजीव तेहने परमनत्कृष्ट परमात्मापणोथाय मिश्रभावजेदयोपसमभावे त्रिगु
जेसम्यकदर्शन झान चारित्र तेहनी भिन्नताके नेदरत्नत्रयो साधक जे परंतु सविकल्प तेत्रिगुणजेरत्नत्रयी तेहनोंजे एकसके . एकपको अनेदपोतेथाय तुजके ० ताहरेचरण यथाख्यात दायकचारित्रा वेषगटे एटले क्षिणमोहगुगणे एकत्व वितर्क अपवीचार सुक्लध्यान उपने जेदर्शन निरधाररूप चारित्रथिरतारूप तेबेधारा ज्ञानधाराथील नेदथयी एटलेषथम मिथ्यात्वकालेतो ज्ञान विषयासरूपेहतो तेसम्यक् दर्शनप्रगटे यथार्थज्ञानथयो तेज्ञानवरूप रमणीथयो थारनावनजे ए मध्यानारूढथयो विकल्पतजतो पोतानीआत्मानेतत्व परिणतिमध्ये त न्मयतापमामतो पडे छाननोजरमण झाननोजनिरधार एटले पर्यायाने देते मूल गुणेएकत्वपामे एअनेदरत्नत्रयीनोखरूप ध्यानीगम्य परंतु मू लनट आत्माज्ञानदर्शनबेगुणेसहित एहवीआम्नाटा सेषनिरधारथी रताएं सर्वचेतनागुणनीति तेमाटेएज्ञानमांहेज थिरत्वपरिणति तय
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