Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
श्रीमाहावीरजिनस्तवन स्वामिगुणनलखीस्वामीनेजेनजे ॥ दर्शनसुन तातेहपामे ॥झानचारित्रतपवीर्यनल्लासथी। कर्मजीपीवसेमुक्तिधाम ॥ ता० ॥५॥
अर्थ | स्वामीजेश्रीअरिहंत तेहनागुणने लखीने जेषाणी नजे के शेवेते दर्शनके समकेतरूपगुणपामे दर्शननीनिर्मलतापामे ज्ञानयथा र्थनासन चारित्रस्वरूपरमण तपतत्वएकाग्रता वीर्यात्मसामर्थ्य तेह ना नासकेनल सवेथी कर्मज्ञानावर्णदिनेजीपीने वसेके रहे मुक्ति के मोदनिरावरण संपूर्ण सिघतारूप धामेके थानकेवसे॥इति एगाथार्थ
जगतवत्सलमहावीरजिनवरसुणी॥चित्तप्रनु चरणनेसरणवास्यो ॥ तारजोबापजीबिरुद निजराखवा ॥दासनीसेवनारखेजोसो।ता०॥६॥
अर्थ ॥ जगत्रवल जगवनाधर्महितकार) एहवामाहावीरश्रीचो वीसमांजिनवर तेहनेसुण के सानलिने चितके ० मनतेषनुने चरणनेसर णे वास्योके० वसाव्यो तेमाटे हेप्रनुपरमेश्वर माहरोआत्मातो पलटी ने सर्वसाधनकरे एहवीसक्ति देखातीनथी तेमाटेनकनक्तिएंकडंबु जेहेता त हेदीनबंधु मुजदासनेतुमेतारजो तमारोतारकतानो बीरुदराखवामा टे दासजे सेवकतेहनी सेवनानक्तिसांबोजोसोमा जेए आझाप्रमाणे भक्तिकरेतोतरे एवाततोखामी माहारामाथवीडालन पण तमारेसंयो गेतरीये एहिजनिटामाआधार ॥ इतिषष्ठगाथार्थ ॥ ६ ॥ विनतीमानजोसक्तीएमआपजो ॥नावस्याा दतासुधनासे । साधिसाधकदसासिबताअनु नवी ॥ देवचं विमलप्रनताप्रकासे ॥ ता०॥७॥ अर्थ || माहरीएटलीवानतिमानजो एपणनवकपणाथी भक्तिनोव चन जेसक्तिसामर्थ्यएवीआपजोतेकहे जे नावके वस्तुधर्मतेस्या
२३
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226