Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
२६५
भोपार्थजिनस्तवन पत्तिरही तेतजीने सुचवलपरमणीकरी तेषरत्ति तथापरिणतिबेहुनो एकजपवर्त्तनथटये जेपरिणतितेहिजपत्तिरही पणनपाधीकपरत्तिनो अंसपणरझोनथी तेमाटे परिणतितथाप्रवृत्तिबेहुएकपणे अनेदेकरीते ए कताकहाये वलिभाबतदात्मतासक्तिके. जेविनावते तम्मन्यताके. तउत्पतिसंबंधेजे ज्ञानावर्णादिपुजल कर्मते संयोगसंबंधे अने सुरक्षाय कवीर्यादिक खगुणते तदात्मसंबंधेजे तेतदात्मसंबंधनी जे यात्मिकस क्ति काटाकवीर्यना बासथी तेयात्माबलेसंततियोगमां संततिके परंपरानुजेसंयोगकर्मसंबंध तेहनेकदे एटले ज्ञानावर्णादिकर्मनी पक ति स्थिति रस प्रदेस नुबंध तेहनी स्थिति प्रमाणेरहवो एटले जे कर्मनेआत्मप्रदेससाथेसंबंधते असंख्यातो कालनकृष्टो सिंतेरकोमा कोमीसागरोपमनो परंतु एकबंधनोगवतां बीजास्थितिबंधपतिसमय बंधाय वलि तेनोगवतांबीजापतिसमटाअनेकबंधाटाबे एटले कर्मपु जलतेएकसमयबंध तेहनोसंयोगतो सादिसांत परंतु अभिनवबंधनीपरं परांटो अनादि जेमपीताथीपुत्र पुत्रीवलिपुत्र एटले तेमनुष्यना आ युषपरमाणेवरते परंतु संताननी परंपराअनंतिचाजे तेमतेहनातेहिजक मतो स्थितिपरमाणेरहे परंतुपर्वकर्मनेनोगववे नवानोबंधथाय तेहनेनो गबवे वलि बीजानवानोबंध एमसंताननीपरंपराए अनादिनो तेसंतति योग आत्मविरहरूप तिहणताबले हेपरमेश्वरतुं न देके० सर्वथान दकरे एटले ज्ञान दर्शन चारित्र वीसनाबले अनादिकर्मसंबंधनेतुमे वि नासकरथु एसक्तिप्रनुजीतुमारामाज बीजामांनही एकार्यतमेकरयो निरावरणथया ॥ इतिक्षितीयगाथार्थ ॥ २ ॥
दोषगणवस्तुनीलषीययथार्थता ॥ लहीनदा सीनताअपरनावे ॥ध्वंसतज्जन्यतानावकर्ता पण ॥ परमप्रनतंरम्योनिजस्वनावे ॥स० ॥३॥
૨૨
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226