Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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श्रीपार्थ जिनस्तवन
१६७ दांतीक सांख्य मीमांसक वैसेषीक बौध नास्तिक तथाजेएकांतव्य दयादिक पदयाही एवाजैन इत्यादिकालखाटोनही एटलेल खाय नही वलिअगोचर के ० इंस्टिागोचरनही अतिषिटपदार्थते अतिति यस्याहादझाने सापेदनपयोगे ध्याननीधारणायेंज गोचर वलिपर मोत्कृष्टसर्वविनावरहीत अनंत गुणपागनावरूपात्माले वलिपरमश्स के ० उत्कृष्टय विनासी सहेजअनंतगुणपर्यायधर्मनाइश्वरले वलिनरदे वतेचक्रवर्ति नावदेवतेनुवनपति व्यंतर जोतष। वैमानीक एचारनिका यनादेवता वलिधर्मदेवतेमुनीराज जिनकल्पी थीवरकल्पी पनिहार विसुधि पमीमां पमीवन सुहमसंपरायी उपसांतमोह दाणमोही उपा ध्याय श्रुतधर पूर्वधर आचार्यगणधरप्रमुखते धर्मदेव तेसर्वमध्येचं मासमांन नायक सासननापती मार्गदेसक एहवाजेजिनवर तेहनी से वना आज्ञामानवारूप करतांथकां वाधे के ० दृधिपामे साधकसंपदा तथासिघतारूपसंपदा तेहथीनीतीर्थकर तीर्थपतीनीसेवनाते परमप्रधान बे व्यथावंदननमनादिक अनेनावथा गुणनोबहुमान आत्मप्रमाणता रूप सेवाकरतांअनंतासिघथवा वलिअनंतासिपथसे एहिजमोद सुख नोन पायजे ॥ ७ ॥ इतिनेमिनाथ जिनस्तवनंसंपूर्ण ॥ ॥अथश्रीपार्श्वनाथ जिनस्तवनलिख्यते॥
__ कमषानीदेसी. सहेजगुणागरोस्वामीसुखसागरो ॥झान वैरागरेपनुसवायो॥ सुधताएकता तीक्ष्णता
नावथी।मोहरीपुजीतिजयपमहवायो॥म ॥१॥ अर्थ ॥ हवेत्रेवीसमां श्रीपार्श्वनाथ पुरषादानी परमेश्वरनी स्तुति करे कहेवाजे सहेजअकतिम वस्तुनामूलधर्म ग्यानानंदादिक तेह
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