Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 163
________________ श्रीवमीजिनस्तवन सम्यष्टिमोरतिहांहरषेघऍरे ॥ ति० ॥ देखीअदनुतरूपपरमजिनवरतण्रे ॥ १० ॥ अनुगुणनोनपदेसतेजलधारावहीरे ॥ ते ॥ धरमरुचिचितनमीमांनिश्चलरहीरे। मां ॥४॥ अर्थ ॥ जिननक्तिरूपमेहदेखीने सम्यक्षष्टी तत्वरुचीरूपमोर तेह ने अत्यंत हरषानंदन पजे श्रीतीर्थकरदेवनो रूपकेहवो जे अत्यंत परमोत्कृष्टरूप सर्वदेवतामलीनेवकुर्वे तोपणश्रीअरिहंतना पगनाअंगुता समान रूपकरीसकेनही एहवोपरमसीतल निरधिकारी परमेश्वरनो रूप देखाने सम्यष्टीवंतजीव वर्षाकालनामोरनीपरे हरषाआनंदपामे. अनुश्री तीर्थकरदेवतेनीनक्तिमांपरिणम्या तत्वरुचीजीव तेपोताना वचनेउञ्चारकरीने अनुनागुणयामकरेतेअनुगुणरूपजलधारा तेधर्मरुची जीवना चितरूपभूमीकामांहेनीश्चल रहे एटलेतत्वरुचीवंतजीवना चित मां अनुनागुणसमाहारहे इतिचतुर्थगाथार्थ ॥ ४ ॥ चातकश्रमणसमूहकरेतवपारणोरे ।। क० ॥ अनुनवरसंआस्वादसकलदुखवारणोरे ।। स० ॥ असुनाचारनिवारणत्रणअंकूरतारे॥व०॥ विरतीतणापरिणामतेबीजनीपरतारे॥ ते ॥५॥ अर्थ ॥ अनुसेवनरूप जलधरावरसतां श्रमणनिग्रंथतत्वरमण) मा हामुनी तदरूपजेचातक तेपारणोकरे एटलेसम्यकदर्शनकाले तत्व खरूपेपोताना अनुनवनीपापासाथीहती तपीपासाश्रीजिननक्तिकारण पामीने आत्मस्वरूपनोटयथार्थज्ञान तेरूपअनुभव तेहनारसनो आस्वा दन के भोगववापणो तेरूपपारणोकरे पणएपारणोकहेवोबेजे सकल सं सारीकविनाव अने कर्मनारकग्रता गुणावर्णतादिकनो वारणे के वारणहार एटले तदूपःखनोनिवारणकरे. ૨૧ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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