Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 165
________________ श्रीनेमिनाथ जिनस्तवन १६३ अर्थ ॥ एहवाएकवीसमांजिनेवश्री नमिनाथ परमदयाल गुणस मुष जगत्रजीवनानावनास्कर कर्मरोगनामाहावैद्य तेहनोजेदर्शनके. मुखानोजोवो अथवासासन अथवादर्शनशब्देसमकित तेहिजमाहाव र्षाद तेहनेप्रवेसेके० पेसवेकरीने परमानंदयात्मिकथानंदरूप सुनद के सुगालथयो माहारादेशके असंख्यातपदेसरूपदेवनेविषे तेमाटे देवमांहेचंषमासमान अथवादेवचंबजे स्तुतिकर्ता तेहनोसंबोधन हेदेव चंधश्रीजिनचंद श्रीवीतरागसर्वज्ञ सर्वदर्शी तेहनाअनुनव गुणज्ञानादि नोआस्वादनकरो तेहनाजगुणबहुमानमांहे लीनरहोतो थोमाकालमां हे सादिके जेहनीयादिले परंतु अनंतके ० बेमोनथी अविनासी ए हवोजेात्मिकसुख तेहनेअनुसरोके. पामो एटले अहोनव्यजीवोतुमे श्रीनिर्मलानंदी संपूर्णवरूपनोगी तेहनीयाज्ञानोमानवो तेमध्येरहो तो संपूर्णसिपथविनासी अदयात्मिक अनंतसंपदापामो वसंपदापगट . करवानो एपुष्टन पाटाने ॥ ७ ॥ इतिश्रीनमिनाथ जिनस्तवनंसंपूर्ण ॥ ॥अथश्रीनेमिनाथजिनस्तवनलिख्यते॥ श्रीपयनजिनअलगावस्याएदेशी नेमिजिनेसरनिजकारजकरयोगमयोस विनावोजी॥ आतमसक्तीसकलप्रग टीकरी॥ आस्वायोनिजनावोजी॥ ने ॥१॥ अर्थ ॥ जादवकुलमा तिलकसमान माहानपगारी एहवा श्रीने मिनाथ जिनेश्वरे निजके पोतानोकार्यकरयो आत्मानेखरमायवाद, धोनही गेमयोंके तज्यो सर्वके० सकलचारनिदेपे विनावते अंत रंग तथाबाह्य कारणथी सर्व विनावतज्यो आत्मानीशक्ति असंख्यात प्रदेसनेविषे अनंतझान दर्शन चारित्र सुख अगुरुलघु दान लान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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