Book Title: Chandraprabhswamicharitam
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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चन्द्रप्रमस्वामि चरित्रम्
द्वितीयः परिच्छेदः
॥२८॥
पुण्ये मदनसुन्दरकथा।
लोहमहागिरिगुरु-कडयघट्टणा जजरिज्जमाणं च । अइपबलकामकल्लोलमालआवत्तपडियं च ॥ १६० ।। मोहमहागिरिकुहरं-तरालवासीहि लद्धलक्खेहिं । लूडिज्जंतं इंदियचोरेहिं सुदुन्निवारेहिं ॥ १६१ ।। रोदज्झाणाभिहाणेण, सबरराएण झत्ति हीरंत । विसयमहाविसविसहरसएहि वेढिज्जमाणं च ॥ १६२ ॥ ईय एवमाइबहुविह-अवायपडियं तडित्ति फुट्टतं । किंकायव्यविमूढा न हु ते पारंति तं धरिउं ॥१६३ ॥ तंमि य फुट्टे जीवो पुणो वि संसारजलहिमज्झमि । निवडइ अणंतकायाइएसु दुक्खाई य सहेइ ॥ १६४ ॥ ता इह कुतित्थपस्थियकुकन्नधारे लहुं पि मोत्तूण । सम्मं परिक्खिऊणं सुकन्नधारे य अणुसरह ॥ १६५ ॥ ते पुण संसारमहासमुद्दतरणम्मि कन्नधारसमा। पंचपरमेट्ठिणो च्चिय, जयत्तए पयडमाहप्पा ॥ १६६ ॥ ते चिय पुषपसाहिय-अवायनियराओ रक्खिऊण इमं । अब्बावाहपहेणं निति सुचारित्तदीवंमि ॥ १६७ ॥ तत्थ वि य सव्वसावज्ज-विरइनामंमि तुगसेलंमि । नेऊण वरमहब्बयरयणाई खिवंति एयंमि ।। १६८॥ जेहिं करयलकलिएहिं, न होइ भुवणे वि किं पि हु असज्झं । निव्वुइपुरी वि परमा नियडि चिय हवइ लहुमेव ॥१६॥ तस्स य गिरिणो उपरि दसबिहमुणिधम्मनामरुक्खाओ । असमट्ठारससीलंग-सहसफलनियरमुवणिति ॥ १७०॥ तस्स वि य अग्गभागे, केवलनाणाभिहाणसिहरंमि । विस्सामिऊण कइवइदिणाई तो तस्स अग्गंमि ॥ १७१ ।। निव्याणपुरी चिट्ठइ भवपारावारपरमतीरसमा । तंमि य ठवंति जीवं, मोत्तु मणुयत्तबोहित्थं ॥ १७२ ।। जीइ न जम्मो न जरा, न य मरणं नेय छुहपिवासा य । न य रायरोसरोया, न भयं न य सोयलेसो वि ॥१७॥
॥२८॥

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