Book Title: Chandraprabh Charitram
Author(s): Virnandi, Durgaprasad Pandit, Vasudev Laxmana Shastri
Publisher: Tukaram Javaji
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४६
काव्यमाला |
वचनामृतैः सुखरसज्ञमिदं कुरु पूर्ववच्छ्रवणयोर्युगलम् । अनिबन्धनाकुशलशङ्कितया किमुपेक्षसे पितरमाकुलितम् ॥ ६० ॥ यदि वा कुतश्चिदपि कारणतो मयि वत्स तेऽजनि निरादरता । अनिमित्तमेव रहिता किमिमां जननीं प्रति प्रकृतिवत्सलता ॥ ६१ ॥ गुणिनं मनोरथशताधिगतं निजवंशवारिधिविधुं विधिना । हरता भवन्तमकृपेण मम क्षतमक्षियुग्ममुपदर्श्य निधिम् ॥ ६२ ॥ पदवीमतीत्य तमसां तपता भुवनोदयाचलशिखामणिना । रहितास्त्वया स्वजनवत्सल मे तिमिरावृता इव विभान्ति दिशः ॥ ६३ ॥ दिनमद्य मे गतमनुत्सवतां शरणोज्झितोऽद्य मम बन्धुजनः । भवदीयदुःसह वियोगभवत्तनुदेहयष्टिरहमद्य मृतः ॥ ६४ ॥ यशसः सुखस्य विभवस्य तथा महसस्त्वमेव मम हेतुरभूः । त्रजता त्वया भुवनभूषण तद्व्यपहस्तितं सकलमेकपदे ॥ ६५ ॥ ललितलोचनयुगं वदनं तुहिनद्युतिद्युति वचो मधुरम् | भवदीयमङ्ग तदशेषमगान्मम पाप्मभिः स्मरणगोचरताम् ॥ ६६ ॥ अपि तद्भवेद्दिनमपुण्यवतः परमोत्सवं पुनरपीह मम । विषयत्वमेष्यति विलोचनयोस्तव वत्स यत्र मुखपङ्करुहम् || ६७ || किमभूदमीष्वपि न वत्सलता खसुहृत्सु काचन कठोरधिया । मनोत्सुकेन सह पांशुरता यदि मे त्वया दयित नापिताः ॥ ६८ ॥ निजभर्तृदुर्व्यसनदुःखचितं शरणोज्झितं प्रविलपन्तमिमम् । सपदि प्रदर्शितपदाम्बुरुहः सुखिनं कुरुष्व नृपभृङ्गचयम् ॥ ६९ ॥ यदसह्यशोकघनकालबलप्रविवृद्धमस्य समुपेत्य पुनः । भव वत्स बान्धवजनाश्रुधुनीपयसो निदाघसमयः सहसा ॥ ७० ॥ सुतशोकशङ्कु परिविद्धमनाः प्रलपन्निति प्रबलबाप्पजलः । क्षणमाधिमन्तरयितुं जगृहे परिमूर्छया स कृपयेव नृपः ॥ ७१ ॥ अथेश्वरश्चन्दनसेचनाद्यैः क्षणादुपायैरपनीतमूर्च्छः । व्यलोकयच्चारणमन्तरिक्षे यतिं तपोभूषणनामधेयम् ॥ ७२ ॥

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