Book Title: Chando Ratnamala
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir
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इन्द्र
वज्रा
छन्दः
तगण:
एन्द्रश्रि
SSI
तगण:
उदाहरणम्
अथवा
यं नाभि
SSI
जगरण:
सुतः स
ISI
दधासि धात्रीं विदधासि दुष्ट
कुमारपाल क्षितिपालकस्त्वं.
(४४) " उपेन्द्रवज्या जतजास्ततो गौ" । अथवा"उपेन्द्रवज्रा प्रथमे लधौ सा" । सा इन्द्रवज्या एव प्रथमे लघुवर्णे सति उपेन्द्रवज्या स्यात् । ज. त. ज. गु. गु. । ।ऽ।. ऽऽ।. ।ऽ।. ऽ. ऽ. । लक्षणमेतत् ।
गु,
सरलार्थः - यस्मिन् क्रमशो जगरणस्तगणो जगरणस्तदुत्तरं गुरुवर्णद्वयञ्च तिष्ठति सा उपेन्द्रवज्रा कथ्यते ।
जिता जगत्येष भवभ्रमस्तैः,
द
S
उपास्यमान्यं कमलासनाद्यैः,
गु.
-
द्या
क्षमाभूतां निर्दलनं प्रसह्य ।
उपेन्द्रवज्ज्रायुधयोस्तदत्र ।। छ. ।।
S
गुरूदितं ये गिरिशं स्मरन्ति ।
उपेन्द्रवज्रायुध वारिनाथैः ।। छ. ।।
छन्दोरत्नमाला - ७२
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