Book Title: Chando Ratnamala
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir
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श्रथवा
स्वच्छन्दं दलदरविन्द ! ते मरन्दं,
विन्दन्तो विदधतु गुञ्जितं मिलिन्दाः । प्रमोदानथ हरिदन्तराणि नेतु, नैवाऽन्यो जगति समीरणात् प्रवीणः ।।
[ इति पण्डितश्रीजगन्नाथकवेः भामिनीविलासग्रन्थे
प्रोक्तम् । ]
प्रहर्षिणी
छन्दः
मगरण:
स्वच्छन्द
SSS
नगरण:
दलद
111
जगरण:
रविन्द
ISI
( ८० ) " चतुर्ग्रहैर तिरुचिरा
" नभसजगा रुचिरा कथिता" । 5।। ।।5. 151. 5. इति लक्षरणपदमिदम् ।
रगरणः
ते मर
छन्दोरत्नमाला - ११०
sts
गुं
न्दम्
नभस्जगाः" | अथवा
न. भ. स. ज. गु. । III.
S
सरलार्थ:-यत्र प्रतिपादं क्रमशः नगरण- भगरण-सगरणजगणोत्तरमेको गुरुवर्णो भवति, तस्य रुचिरा नाम प्रसिद्ध भवति ।
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