Book Title: Chando Ratnamala
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 148
________________ अथवानमामि नेमितीर्थपं सदा सुशीलशालिनं , समस्तसूरिचक्रचक्रवर्तिताविराजिनम् । प्रदीपदीपमालिकाधिकप्रकाशशालिकां , विधाय विश्वनालिकां दधानमात्मसम्भवम् ॥ १ ॥ . [ इत्यस्मत्प्रगुरुदेवाचार्य श्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वर विरचित श्रीदेवगुर्वष्टके कथितम् ।] पञ्च | जगणः | रगण: | ल. | गू | जगरणः | रगणः | ल. | गु, . चामर नमामि | नेमिती | र्थ | पं। सदासु | शीलशा लि | वृत्तम् ।। | ss | ।। | ।। | ss | ।। अथ सप्तदशाक्षरकपादकं छन्दः । (६५) "रसै रुद्रैश्छिान्न यमनसभलागः शिखरिणी। अथवा-"यमनसभलगाः शिखरिणी"। य. म. न. स. भ. ल. गु.। ।s. sss. ।।। ।।s. si. I. 5. इति लक्षणपदमिदम् । सरलार्थः-यत्र प्रतिचरणं क्रमशः यगण मगण नगण सगण भगणोत्तरं लघुगुरुवरणौं भवतस्तस्य शिखरिणी छन्दोरत्नमाला-१२५

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