Book Title: Chando Ratnamala
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 163
________________ अथवाह्रीविनियन्त्रण विघ्नमया कुस्तेऽभिनवावतरद्वयसां , प्रौढि पुरन्धिजनस्य तथा तिरयत्यपराधपदं सहसा । कोपपदेन च गोत्रपरिस्खलितं न चकारयते तदसौ, कामसखीमदिरेह स तर्षमभाणि चिरं किल कामजनैः ।।छ.।। भगरण | भगणः | भगणा: गण: भगग: भगण: भगण: | मदिरा माधव | मासिवि | कस्वर | केसर | पुष्पल सन्मदि रामुदि छन्दः ।। | । | | | | | | | त्रयोविंशत्यक्षरां जाति वर्णयति "विकृतौ न्जौ जौ भ्जौ भ्लौ गोऽश्वललितं ट:"। अथवा-विकृतिः । “यदिह नजौ भजौ भ्जभलगास्तदश्वललितहरार्कयति तत्" । न. ज. भ. ज. भ. ज. भ. ल. गु.। . IsI. ।। ।।. 50. Is.. 51. ल. गु.। इति लक्षणपदमिदम् । सरलार्थः-यत्र प्रतिपादं क्रमशो नगण-जगण-भगणजगण-भगण-जगण-भगणानां वर्णास्ततो लघुरेको गुरुश्चैकस्तस्याश्वललितं नाम प्रख्यातं भवति । दशभिरक्षरैर्यति छन्दोरत्नमाला-१४०

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