Book Title: Chando Ratnamala
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 134
________________ उदाहरणम्समुल्लसद्दशनमयूखचन्द्रिका तरङ्गिते तव वदनेन्दुमण्डले । सुलोचने कलयति लाञ्छनच्छविः , घनाञ्जनद्रवरुचिराऽलकावली ॥ छ. ॥ (८१) "स्यौ स्जौ गः सुदन्तम्" । स. य. स. ज. गु. । ॥s. Iss. ।s. I51. s. लक्षणपदमिदम् । सरलार्थः-यत्र प्रतिचरणं क्रमशः सगण-यगण-सगणजगणोत्तरमेको गुरुवर्णो भवन्ति, तस्य सुदन्तमिति नाम विज्ञेयम् । उदाहरणम्त्रिदिवं व्रजभिदिविषत्पतेः पुरः , सुभटैर्जवान्निर्दलिता इवार्गलाः । करवालघातैस्त्रुटितास्तदा समिद् , वसुधा सुदन्ताकरिणां चकासिरे ।। सगरणः यगण: सगरणः जगणः सुदन्ता त्रिदिवं व्रजद्भिः दिविषत् । पतेः पु वृत्तम् IIS 155 TIS ISI छन्दोरत्नमाला-१११

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