Book Title: Chando Ratnamala
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir
View full book text
________________
नगणः | नगणः | मगणः | यगणः | यगणः
मालिनी
छन्दः
अजित | मजित
नाथं रा
गरोष
प्रमोहैः
lll
555
iss
i ss
(९०) "रजरजरास्तूरणकं स्यात्"। र. ज. र. ज. र. । ।s. IsI. SIS. II. 51s इति लक्षणपदमिदम् ।
सरलार्थः-यत्र प्रतिपादं क्रमशो रगण-जगरा-रगणजगण-रगणाः वर्तन्ते, तस्य तूरणकं नामकं छन्दो भवति ।
उदाहरणम्स्फीतनव्यगन्धलुब्धषट्पदौघसेविताश् ,
चैत्रमासि पश्य भान्ति चूतमञ्जरीशिखाः । ऊर्ध्वदृश्यमानकङ्कपत्रकृण्णपक्षकास् ,
तूणका इवेह वीर मन्मथेन लम्बिताः ।। छ. ॥
रगणः
जगरणः
रगणः
जगणः | रगणः
तूणक
स्फीतन
व्य गन्ध
लुब्ध षट् | पदौघ । सेविताश्
SIS
151
SIS
। | ss
(६१) "नजभजराः प्रभद्रकम्"। अथवा-"भवति
छन्दोरत्नमाला-१२०
Page Navigation
1 ... 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174