Book Title: Chando Ratnamala
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir
View full book text
________________
तगणः
तगणः
जगणः . रगणः
इन्द्रवंशा
वृत्तम
दारेषु
सुग्रीवः
कपीश्व
| रस्ययत्
___ss
L
SSI
151
sis
(६३) "इह तोटकमम्बुधिसैः प्रथितम् ।” स. स. स. स.। . ।।5. ॥s. ॥s. "सगणचतुष्कं यत्र तत् तोटकम् ।" लक्षणमेतत् ।
सरलार्थः-चतुभिः सगणैस्तोटकं सम्पद्यते । तदुक्तसीस्तोटकम् । यत्र प्रतिपादं क्रमशश्चाचारः सगणा भवन्ति, तच्छन्दस्तोटकं कथ्यते । पादान्ते यतिरत्र । उदाहरणम्त्यज तोटकमर्थनियोगकरं ,
प्रमदाऽधिकृतं व्यसनोपहतम् । उपधाभिरशुद्धमति सचिवं
नरनायकभीरुकमायुधिकम् ॥ अथवापरलोकविरुद्धकुकर्मरतं
बहिरार्जवमादधतं कुटिलम् । विषकुम्भमिवेद्ध सुधापिहितं ,
त्यजमित्रमतोटकतैकगुणम् ॥
छन्दोरत्नमाला-९४
Page Navigation
1 ... 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174