Book Title: Chando Ratnamala
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 128
________________ न. ज. ज. य । (७४) "नजजयास्तामरसम्"। 1. Is1. IsI. Iss. लक्षणमिदम् । सरलार्थः-यत्र प्रतिचरणं क्रमशो नगण-जगण-जगणयगणाः सन्ति, तस्य तामरसं नाम प्रख्याति । उदाहरणम्सततविकाससमुद्धरशोभं , सकलकलङ्ककलापरिमुक्तम् । । तव वदनं मदिराक्षि किमेतत् , भवति न तामरसं न च चन्द्रः ।। छ. ।। नगरण: जगणः जगरण: यगणः तामरस: सतत विकास छन्दः विकास । समुद्ध । रशोभं isi i 151 iss (७५) "प्रमिताक्षरा सजससैरुदिता"। स. ज. स. स.। . II. ||5. ।।5. लक्षणपदमेतत् । सरलार्थः-यत्र प्रतिपादं क्रमशः सगण-जगण-सगणसगणाः भवन्ति, तस्य प्रमिताक्षरा नाम प्रख्यातं भवति । छन्दोरत्नमाला-१०५

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