Book Title: Chakkavattisa Kaha Author(s): Jayanandvijay, Publisher: Ek Shramanopasika View full book textPage 5
________________ ************************ णमो समणस्स भगवओ महावीरस्स” " णमो खमासमणाणं गोयमाणं महामुनिणं" " गमो खमासमणाणं सूरिराजइन्दाणं महामुणिणं” " श्री चक्कवट्टिस्स कहा” Jain Education International ( श्री द्वादशचक्रवर्ती चरितम् ) णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं । णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं ॥ एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावपणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं ॥ नमिऊण जिणवरिंदे इंदन रिंदच्चिए तिलोयगुरू । चक्कवटि टस्स कहा, बुच्छामि गुरूवरसेणं ॥ अस्मिन् जम्बुद्वीपे भरतक्षेत्रेऽस्यामवसर्पिण्याम् भरतचक्रिणा ऋषभदेवः पृष्टः । हे भगवन् ! अस्याम् पर्षदि भगवता सदृश भात्री तीर्थंकरजीवः सन्ति न वा १ तदा भगवानाह - "समवसरणे नास्ति परं बहिर्तवसुतो मरीचिना For Personal & Private Use Only ******* ************ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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