Book Title: Bhuvaneshvari Mahastotram
Author(s): Jinvijay, Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 21
________________ (१३), ... सकलागमाचार्यचक्रवर्ती श्री पृथ्वीधराचार्य कृत प्रस्तुत स्तोत्र भी ऐसा ही मन्त्रगर्भित स्तोत्र है। इस में सब मिला कर ४६ पद्य हैं जिनमें से पूर्व ३६ शार्दूलविक्रीडित पद्यों में आद्याशक्ति भगवती भुवनेश्वरी की स्तुति की गई है और ३७वें तथा ३८वें पद्यों में स्तोत्रकर्ता ने अपने गुरु परमकारुणिक श्रीसिद्धिनाथ अपरनाम श्रीशम्भुनाथ का स्मरण करते हुए उनके कृपाबाहुल्य का वर्णन किया है। ३६वें पद्य में भगवती से प्रार्थना की गई है कि वाग्विमुखों (जड़ों) से उनका सम्पर्क न हो । ४८वें पद्य में पुनः गुरु की अभ्यर्थना की गई है और ४१ वें में इष्टदेवतासाक्षात्कार और उसके स्वहृदयपीठाधिष्ठान का वर्णन किया गया है। पद्य ४२वें में गुरुप्रसादसम्प्राप्ति का उल्लेख है। ४३ और ४४वें पद्यों में पूजा और जपविधान के साथ साथ अचिन्त्यप्रभावा फलश्रुति का निर्देश किया गया है। स्तोत्र के अन्तिम श्लोक में इस स्तोत्र की रचना में भगवान् शम्भुनाथ की आज्ञाप्राप्ति का निर्देश करते हुए इसे अलौकिक, प्रभविष्णु और सम्पूर्ण सिद्धियों का अधिष्ठान बताया गया है । मोह और महाभ्रम की उद्दामलहरियों से अभिभूत इस संसारमहोदधि से परपार उतरने के लिए दृढ़पोत के रूप में इस महास्तोत्र की रचना करते हुए आचार्य ने सन्मात्रबिन्दुसमुद्भवा परा, पश्यन्ती, मध्यमा और वैखरी से प्रारम्भ कर वाग्भवमहिमा, बीजान्तरध्यान, मन्त्रोद्धाय, देवताखरूप, यजनविधान, आराधन और आराधनफल, अक्षरमातृकानिर्मित भुवनेश्वरीविग्रह, अन्तर्बहिर्यजन, कुंडलिनीजागरण और षट्चक्रभेदन प्रभृति का वर्णन करते हुए आत्मशरणागतिनिवेदन किया है। श्रीपृथ्वीधराचार्य भगवत्पाद शंकराचार्य के शिष्य और तन्त्र, मन्त्र एवं समस्त शास्त्रों के प्रकाण्ड पंडित थे । बाम्बे ब्रांच आफ दी रायल एसियाटिक सोसायटी के सूचीपत्र में ८५१ संख्या पर अंकित बालाचनविधि के विवरण में श्रृंगेरीमठ की गुरुपरम्परा इस प्रकार दी हुई है :- "गौडपाद, गोविन्द, शंकराचार्य, पृथ्वीधराचार्य, ब्रह्मचैतन्य और आनन्दचैतन्य आदि ।" ... आफ्रेट ने लिपजिग कैटलाग संख्या १३७४-७७ पर पृथ्वीधराचार्यकृत सात कृतियों का विवरण दिया है, जो इस प्रकार है : ...१ भुवनेश्वरीस्तोत्र २ लघुसप्तशतीस्तोत्र' ३ सरस्वतीस्तोत्र ४ कातन्त्रविस्तरविवरण ५ मृच्छकटिक की व्याख्या ६ वैशेषिक रत्नकोष और ७ भुवनेश्वर्यचनपद्धति । लघुसप्तशतीस्तोत्र की दो हस्तलिखित प्रतियां श्री रूपनारायणजी “साधक" शास्त्री द्वारा महास्तोत्र के प्रायः मुद्रित हो जाने पर मुझे प्राप्त हुई हैं, अतः इसे भी छपवा दिया गया है। श्री साधकजी इसके लिए धन्यवादाह हैं। ... ....: - .:.. (सम्पादक)

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