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( १८ ) Sense organs ) का नत्तत कायों में उचित और अनुहल मात्रा में लगाना ।
२ बुद्धि की सहायता से ठीक-ठीक विचार करते हुए कार्यों का सन्या रुप से प्रतिपादन करना । ३ देश-काल और आत्मगुणों से विपरीत आहार-
विरादि का विधिपूर्वक सेवन करना।
आधुनिक प्रचलित सामाजिक न्याय-विज्ञान में आयुर्वेटोक दन सम्वृत्ती का भी एक अभूत-पूर्व स्थान है। क्योंकि इस विज्ञान का भी चरम लच्य आरोग्य, दीर्घायुप्य तथा स्वास्थ-संरक्षण ही स्थिर किया गया है। सदन का ही दूसरा नाम सामान्य धर्म है। इस सामान्य धर्म के अनुष्टान में सुख और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। __लभी प्राणियों की सभी प्रवृत्तियाँ सुख के लिए होती हैं और नुन विना धर्म के नहीं होता। इसलिए मनुष्य को धर्मपरायण होना चाहिये । हिमा, चोरी, व्यर्थ कार्य, चुगलन्चोरी, कठोर भाषण, अलका अगदा करना, गुण में टोप का आरोप और यथार्थ का न देखना ये दय प्रकार के पाप कम है। दनको शरीर, मन और वाणी से निकाल देना चाहिये -
सुखार्थाः सर्वभूताना मता' ला प्रवृत्तयः । सुख च न विना वर्मात् तस्माद्धर्मपरो भवेत् ।। हिसास्तेयान्यथाकामं पैशुन्य परुपानृते । संभिन्नालापव्यापादमभिध्याग विपर्ययम् ।। पापं कर्मेति दशा कायवाइमानसैस्त्यजेत् ।। (वान्स०३)
पंचकर्म
( Five Operations) आयुर्वेद की एक अन्यतम विशेपता उसके पचकों की है। इन पंचक्मों का व्यक्ति या जनता के स्वास्थ्य की रक्षादृष्टि से उतना ही महत्व है जितना कि रोगी व्यक्ति का चिकित्सा में। पचक्रमों की संरया जैसा कि नाम से ही स्पष्ट ह-पाँच हैं । वमन (कै बराना), विरेचन (दस्त कराना), आस्थापन वस्ति (इनेमा के द्वाग आत्रों को स्वच्छ करना), अनुवासन (इनेमा के द्वारा गुदामार्ग से स्निग्ध पोपणों का पहुंचाना) तथा गिगेविरेचन (नस्य के द्वारा गिर और श्वसनमार्ग की शुद्धि करना)। इन पाँचों कमों के द्वारा रोग के उत्पादक दोपों या विपों का दूरीकरण सम्भव है यदि दोप या विप शरीर से दूर हो जाय तोविकार स्वयमेव लुप्त हो जाता है और व्यक्ति और समाज स्वस्थ बनाया जा सकता है । पंचकर्म के पूर्व नेहन और स्वेदन का विधान है इन स्नेहन