Book Title: Bhavishyadutta Charitram
Author(s): Meghvijay Gani, Mafatlal Zaverchand Gandhi
Publisher: Mafatlal Zaverchand Gandhi
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________________ भविष्यदत्त चरित्रम चतुर्दशमोड धिकार 107 शराशरि तथाऽऽरेभे, रणस्तैः पञ्चभिः नृपैः / पुरस्सरा यथा सर्वे, नेशस्तत्र दिशो दिशम् // 27 // वैतालवत्समुत्तालोऽनन्तपालः करालहक् / समापतन् शराघातैः, कृतस्तूर्ण पराङ्मुखः // 28 // काकनाशं ननाशोच्चै-श्चित्राङ्गः सारे भिया / भटेन केनचित्पाणौ, सकपाणे निपातिते // 29 // रथाचूर्णीकृता वैरिभूभृन्मनोरथा इव / मातास्स्थापिता वेगाद, दूरादेव विनिर्ययुः // 30 // सादिलोके विनिहिते, शून्याः जम्मुईया रयात् / प्रपश्चात् पञ्चभूपालैः, रिपुसन्यं कथितम् // 31 // अहो महोत्सवभृतां-भाग्यभाजां पदे पदे / सम्पदः स्निग्धकामिन्य, इवाऽभ्यायान्ति सादरम् // 32 // यः शत्रुभावादाऽऽगच्छा, कच्छपो विजीगीशया / स मित्रीभूय सानिध्यं, विदवे रणकर्मणि // 33 // नासीरभामाकर्ण्य, हस्तिनापुरभूपतिः। जहर्ष हर्षदानेन, ववर्ष कनकैनैः॥ 34 // जिघृक्षुः परभूभागान् , भिक्षुवत्पोतनाधिपः / शुशोच लोचने कुर्वन्नुत्ताने भयसम्भ्रमात् // 35 // पाहिणोद् दूतमाकूतं, विनिवेध महीपतिः। न कार्यः कुरुराजेन, रणः कीर्तिनिवारणः // 36 // श्रूयतेऽस्य महाभाग्यः, सेनानीत्वे निवेशितः / भविष्योऽस्ति महाबुदिः, सदैव देवसन्निधिः // 37 // सेनान्याऽनेन कच्छेशः, स्वच्छबुदया वशीकृतः / अस्मद्विभिध सद्योऽपि, युध्यतेऽस्मद्वलेन सः // 38 // सन्धि विधाय तशीघ्र, कुरुराजेन् साम्पतम् / पञ्चालममुखा देशाः, साधनीया ममाऽऽजया // 41 // दुतेन गत्वा युवराट्, शापितो नृपवार्तिकम् / तेनाऽभाणि कथं सन्धिः, क्रियते दारुणे रणे // 42 //

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