Book Title: Bhavishyadutta Charitram
Author(s): Meghvijay Gani, Mafatlal Zaverchand Gandhi
Publisher: Mafatlal Zaverchand Gandhi
View full book text
________________ भविष्यदत्त चरित्रम नवदशमोऽ धिकारः 144 परजन्मनि तेषां स्युस्तादृशा एव वैभवाः / स्वार्थबुदया भृशं लोकः, सशोकैः किं विधीयते // 55 // यतः-अनित्यानि शरीराणि, विभवो नैव शाश्वतः। नित्यं संनिहितो मृत्युः, कर्तव्यो धर्मसङ्ग्रहः // 56 // आश्वास्य वचनैरेवं, श्रेष्ठिनामात्यनन्दिनी / पट्टकता जनन्याऽपि, स्थापिता निजसंनिधौ // 57 // दिनैः कतिपयैः राज्ञा, दत्वा तस्मै जलांजलिम् / मन्त्रिवन्मन्त्रिपुत्रस्य, चक्रे सत्कारणा भृशम् // 58 // वीतशोके नृपे लोकः, पारेभे समहोत्सवम् / व्यवसायमतिशुद्धाऽध्यवसायाद्यथोचितम् // 59 // वज्रोदरः स मृत्वाऽभूत्तिलकद्वीपभूपतिः / नाम्ना यशोधनो न्याय-शोधनो बहुशो धनैः // 60 // स श्रेष्ठी कीर्तिसेना च, प्रणयेन परस्परम् / नन्दिमित्रगिरा धर्म-निरतौ तौ बभूवतुः // 61 // नन्दिमित्रः क्रमाद्गेह, सत्यज्य श्रमणाऽन्तिके / कृताऽनशनकर्माऽगात्सुधर्मा स्वर्गमच्युतम् // 62 // नाम्ना विद्युत्मभः शक्र-सामानिकसुरेश्वरः / समभूद् भूरितेजोभिः, संशोभितदिगम्बरः // 63 // अन्तर्मुहूर्तेन युवा, सुरः स्वतनुभासुरः / समुत्तस्थौ स शय्यायाः, षोडशाभरणान्वितः // 64 // ज्ञात्वाऽवधिप्रयोगेण, नन्दिमित्रभवं निजम् / स्वाभियोगिकदेवेन, वपुः स्वं समपूपुजत् // 65 // इतश्च धनमित्रोऽपि, विभूतेः फललिप्सया / श्रीसाधर्मिकवात्सल्य, सङ्घभक्त्या व्यरीरचत् // 66 // धर्म प्रभावयन्नेवं, पुत्रपित्रोः प्रसन्नयोः / प्रबोधनेन जैनोक्त्या, पुण्यरागमजीजनत् // 67 // श्रेष्ठिमाता वितन्वन्ती, पात्रदान दिने दिने / किञ्चिज्जुगुप्सामकरोत्, तिनां मलधारणात् // 68 // 144

Page Navigation
1 ... 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170