Book Title: Bhavishyadutta Charitram
Author(s): Meghvijay Gani, Mafatlal Zaverchand Gandhi
Publisher: Mafatlal Zaverchand Gandhi

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Page 155
________________ भविष्यदत्तचरित्रम 143 नवदशमोऽ धिकार ध्यायन्नेवं हृदि क्रुद्धो, मृत्वा कौशिकतापसः / असुरोऽभूद्विनोदाय, तिलकद्वीपमाश्रितम् // 41 // वज्रोदरो महामन्त्री, बलैर्भूमि चलाचलम् / कुर्वन् बलादिषु हन्तुं, दधावे दुर्गभूमिषु // 42 // कुत्राऽपि विषमे स्थाने, युद्धारम्भेषु दुर्द्धरे / निनन् रिपुन् हतोऽमात्यः, पाश्चात्यरिपुसैनिकैः // 43 // तत् श्रुत्वा वज्रसम्पात-कल्पां वज्रोदरच्युतिम् / राजा निर्व्याजतः सर्व, तत्याज राजचेष्टितम् // 44 // शोकाकुलतया किश्चिदजल्पन् स व्यकल्पयत् / हा ! देव कुपितः किं मे, यन्मन्त्री स ममाऽऽहूतः॥ 45 // स्मार स्मारं गुणांस्तस्य, विललाप प्रजापतिः / हा ! मन्त्रिन् ! क्व नु सम्पाप्तो, गुरुधर्मोपदेशनात् // 46 // मन्त्रिगेहेऽपि तत्पत्नी, चक्रन्द करुणस्वरैः। कीर्तिसेनाऽतुच्छमूर्छा--बलाद्भूमौ लुलोठ हा ! // 47 // पौराः ससंभ्रमाः शोकादूरालोकाऽश्रुपाततः / अन्तर्दाहान्निरुत्साहा, हाहारावं वितेनिरे // 48 // धनमित्रस्ततः श्रेष्ठी, विहस्तस्त्रस्तमानसः / सर्व परिलनं वाचा, बोधयामास तद्गृहे // 49 // किं वृथा शोचनैरेभिर्वश्यो देवस्य नास्ति कः / उदयेऽनुदये वैकः, स एव शरणं नृणाम् // 50 // चन्दनै तलतिः , कीर्तिसेनामुपाचरत् / श्रेष्ठी मृच्छाऽपसारे सा, विललाप मुहुर्मुहुः // 51 // . हे भ्रातस्तातमरणे, शरणेन विवर्जिता / किमहं भाविनी दैवान्नैवाऽऽलम्बनमस्ति मे // 52 // हसितं ललितं गीतं, जल्पितं स्वजनैः समम् / ताते जीवति यज्जातं, तदभूत्स्वमसन्निभम् // 53 // प्रमृज्य लोचने श्रेष्ठी, स्वसारं पाह सारधीः / सन्तः सर्वोपकाराय, जायन्ते तादृशाः स्वसः॥५४॥ 143

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