Book Title: Bhavishyadutta Charitram
Author(s): Meghvijay Gani, Mafatlal Zaverchand Gandhi
Publisher: Mafatlal Zaverchand Gandhi
View full book text
________________ भविष्यदत्त चरित्रम 10) नवदशमोऽ धिकारः कतिचिदिवसान् यावत, सर्पत्कन्दर्पतेजसा / तारुण्ये श्रमणं दृष्ट्वा, जहासाऽऽकुंचिताऽऽनना // 69 // समाधिगुप्तमुनिना, जैनधर्मे स्थिरीकृता / धनलक्ष्मीरारराध, श्रुतपञ्चमिकाव्रतम् // 70 // तदुद्यापनकं कृत्वा, चैत्यभक्तिविधानतः / निजावतारं सा मेने, सफलं विभवैः सह // 71 // तत्सर्वमनुमोद्यैषा, कीर्तिसेना प्रसेदुषी / विदुषी चतुरालापैः, ररज श्रेष्ठिनो मनः॥ 72 // धनदत्तः क्रमादम, सम्यगाराध्य चेतसा / मृत्वाऽभूद्धस्तिनापुर्या, श्रेष्ठी धनपतिऔसौ / / 73 // धनलक्ष्मीः पुनर्मृत्वा, कमलश्रीरजायत / साधोर्जुगुप्सावशतः, पत्या निस्सारिता गृहात् / / 74 // धनमित्रः परं धर्म, भावयन् भद्रमानसः / क्वाऽप्युद्यानगतो विघुत्पातायातमवाप सः // 75 // पान्तेऽहद्भ्यो नमस्कार, स्मरन् माणान् जहाँ द्रुतम् / त्वमभूर्धनमित्रः स्वसुकृतैस्तैः पुराकृतः // 76 // पत्युम॒त्युमथाऽऽकर्ण्य, गुणमाला शुचाऽऽकुला / रोदयन्ती परिजनं, वितेने सम्भ्रमातुरम् // 77 // कीर्तिसेनाऽपि तद्वार्ता-श्रवणोद्भ्रान्तमानसा / विद्युत्पातं तु संजातं, मेने स्वस्यैव शीर्षके // 78 // क्षणेन प्राप्तचैतन्या, विललाप महास्वरैः / हा! भ्रातस्तव सद्धर्मरक्तस्य किमभूदिदम् / / 79 // मृते पितरि मे स्वान्तं, विश्रान्तं त्वयि सात्विके / तवाऽपि दैवरोषेण, पञ्चत्वे का गतिर्मम // 8 // सर्वपौरजनैस्तत्राऽभ्युपेत्य कृततक्रियः / सरस्थानीयते नार्यों, कारितेऽस्य जलांजलिम् // 81 // विश्व स्वजनमाऽपृच्छय, गुणमालाऽअहीद्वतम् / कीर्तिसेनाऽपि तद्दुःखाद्विजही माणवृत्तिकाम् / / 82 // 185

Page Navigation
1 ... 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170