Book Title: Bhavishyadutta Charitram
Author(s): Meghvijay Gani, Mafatlal Zaverchand Gandhi
Publisher: Mafatlal Zaverchand Gandhi

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Page 143
________________ भविष्यदत्तचरित्रम 131 सप्तदशमोड * सागरद्वितयायुष्कः, सुरः सोमप्रभः स्फुरन् / ततश्यत्वा मनोवेगः खेचरेन्द्रो बभूविवान् // 50 // मुकेशया मागजनन्या, सेवितोऽयं भवान्तरे। 'मुनिः संयमरत्नाख्यस्तं पृष्ट्वाऽत्राऽऽगतोऽस्त्ययम् // 51 // सोऽपि सुरप्रभो भावी, सुप्रभस्तव नन्दनः / मातुर्दोहदमापूरि, तत्सम्बन्धात् खगामिना // 52 // वृत्तान्तमेवमाऽऽकर्ण्य, भविष्यो भूपुरन्दरः / सुवाक्यस्याऽपि मित्रस्य, पुनः प्रपच्छ तं भवान् // 53 // सुवाक्यो दुःखसंतप्तो, मृत्वाऽऽर्तध्यानतस्तदा / भ्रान्त्वा भवान् मेरुपाचे, जातोऽस्त्यजगरो महान् // 54 // ततो वासवदत्तेन, कतिचिदिवसात्यये / विज्ञप्तश्चरयोगेन, काम्पील्यनगराधिपः // 55 // स्वामिन् कृताऽपराधान्नः, सत्वरं मुश्च गुप्तितः / न चेन्मारय दन्तीन्द्रदन्ताघातेन कोपतः // 56 // तद्विज्ञप्ति प्रपद्याऽभूत, प्रसन्नः क्षितिवासवः / मोचयामास कारायाः, प्राग्वत् सन्मानतोऽय तम् [तौ // 57 // अनिमित्रेण संचिन्त्य, स्वात्मानं क्लेशकारणम् / समर्पणा मियाऽऽलापि मियालापेन तत्क्षणम् // 58 // क्षमस्व कान्ते ! कान्तेन, मया सन्तापिता चिरम् / समं परिजनेन त्वं, यास्याम्यहमतस्ततः // 59 // क्षरदश्रुमुखी पोचे, सुमुखी प्रेमनिर्भरात् / हा विदेशाचिरं प्राप्तो, राज्ञा गुप्तौ प्रवेशितः // 6 // दैवात्ततो विमोक्षेऽपि, पुनर्विरहमीहसे / नाथ ! किं करुणा नास्ति, वरुणों त्यजतस्तव // 61 // क्षणमात्र न मुञ्चामि, स्वामिस्त्वां दूरतोऽधुना / ततोऽग्निमित्रस्वत् प्रीति, निश्चिकाय स्वचेतसा // 2 // दम्पतीभ्यां तदाहनाय वढ्नौ प्रविश्य सत्वरं / स्वतनुर्भस्मसाच्चक्रे, पुरः पश्यति नागरे // 63 // 1 मुनियुग्ममध्ये धर्मकथकादन्यो मुनिः संयमरलारूयः, स्वप्राग्भवेऽपि स मुनिः मुनिस्वेनैव जातः तत्र सुकेशया पूजितः इत्यथों घटामश्चति. * *

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