Book Title: Bhavishyadutta Charitram
Author(s): Meghvijay Gani, Mafatlal Zaverchand Gandhi
Publisher: Mafatlal Zaverchand Gandhi
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________________ भविष्यदत्तचरित्रम् 135 अष्टादशमोऽ धिकारः अरज्यमाना राज्येऽपि, माज्ये विभवसामे / साऽन्यदा दुःखदग्धाऽगाद्विदग्धा तापसाश्रमम् // 13 // वैराग्यं भावयन्ती सा, कौशिकं तापसाऽधिपम् / उपासितुं प्रतिपातर्ययौ तत्र ससम्भ्रमा // 14 // इतश्च नगरे तस्मिन् , धनदत्तो धनी वणिग् / धनलक्ष्मीः प्रिया तस्य, धनमित्रस्तयोः सुतः // 15 // रूपवान् पुण्यलावण्यस्तारुण्याज्जनरञ्जनः / कौशिकस्थानमाऽऽयाति, स मायातिशयाशयः॥ 16 // तं दृष्ट्वा लोचनानंदमाऽऽललापाऽजलोचना / रोचनान्मनसः स्वीयं, प्राणेशमिव सुन्दरम् // 17 // दूरपोहाऽस्य मोहेन, मदनोन्मादसादरा / कटाक्षर्वीक्ष्यमाणाऽसौ, सौभाग्यं पोदचीकटत् // 18 // गवागतैर्वनस्यान्तश्चकमे सुरतोत्सवम् / समं तेन भुवोर्भ्रान्त्या, ज्ञापयन्ती निजाशयम् // 20 // परं परिजनश्रेण्या, वेष्टिता स्मरचेष्टिता / न क्वाऽप्यवसर प्राप, वक्तुं तेन समं हि सा // 21 // स्मरावेशात्कृतोदेशात्तदाऽऽलापाय मन्त्रिजा / धनमित्रगृहे गत्वा, तत्पल्या सख्यमाऽतनोत् // 22 // कुर्वती कारयन्ती वा, रागाचिकुरबन्धनम् / प्रीत्यालापैमिथस्तत्रागमयत्साऽखिलं दिनम् // 23 // पत्युगमागममश्चैस्तत्संमुखनिरीक्षणैः / धनमित्रवधूस्तस्या, विवेद मदनव्यथाम् // 24 // पप्रच्छ निनिमित्तं किं, खिद्यसे सखि ! विद्यते / विलक्षहेतुता केन, जम्भारम्भाङ्गमोटनैः // 25 // वलयानि भुजे कार्यात्, रणकुर्वन्ति सम्मति / कस्याऽपि कण्ठाऽऽश्लेषेण, किं तद्वारणमीहसे // 26 // निश्वासपवनान् शुष्यन्मुखानं स्फुटिताऽधरम् / चुम्बनेनाविलम्भेन, कस्याऽप्याई चिकीर्षसि // 27 //

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