Book Title: Bhavishyadutta Charitram
Author(s): Meghvijay Gani, Mafatlal Zaverchand Gandhi
Publisher: Mafatlal Zaverchand Gandhi
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________________ अष्टादशमोज भविष्यदत्त चरित्रम 138 मिथ्याभावं प्रतिपदे, तद्वाक्यान्नागरोऽखिलः / तस्याऽनुशासनं भूपः, प्रशशंस मुहर्मुहुः॥ 55 // समाधिगुप्तस्तत्राऽऽगादन्यदा मुनिनायकः / जिनोक्ततत्त्वश्रद्धानं, दधानः स धियां निधिः // 56 // वजोदरस्तं निनसुर्ययौ परिजनैः सह / गीतार्थ मुनिसार्थेन, समेतं शुद्धचेतसा // 57 // तदुक्तियुक्तिश्रवणात, अशंसयमहाशयः / मन्त्री नृपतिमानिन्ये, ज्ञानोद्दीपनहेतवे // 58 // तद्द्वात्वा परिवारेण, समं पौरजनः पुरः / धृतालङ्कारविस्तारः, समागाद गुरुसंनिधौ // 59 // साधुना देशनाऽऽरब्धा, जीवाः क्लीबाः कथं जने / निरंजने धर्मविधौ, विधूतकलुषबजे // 6 // यतो नैषधीयकाव्येभगुरं न वितयं न कथं जीवलोकमवलोकयसीमम / येन धर्मयशसी परिहा, धीरहो चलति धीर : तवाऽपि // 61 // असारे संसारे कथमपि समासाद्य नृभवं / न धर्म यः कुर्याद्विषयमुखतृष्णातरलितः। ब्रुडन् पारावारे प्रवरमपहाय प्रवहणं / स मुख्यो मूर्खाणामुपलमुपलब्धं प्रयतते // 62 // सर्वजीवहितं धर्म, विवेकी विदधीत यः। अपारभवपाथोधि, स बोधिवहनात्तरेत् // 63 // एकवा श्रीजिनेन्द्राणामाज्ञया धर्ममाचरेत् / द्विधा सागारसंयोगाऽनगाराऽऽचरणादमुम् // 64 // त्रिधा ज्ञानदर्शनाद्वा, चारित्राराधनादयम् / चतुर्धा दानशीलाप्ति-तपोभावनकर्मभिः // 65 // पञ्चधा धर्मसंसर्गः, स्वर्गदायी व्रतादरात् / षोढा षट्कायरक्षाभिः, सप्तधाऽर्थविचिन्तनात् // 66 //

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