Book Title: Bhavishyadutta Charitram
Author(s): Meghvijay Gani, Mafatlal Zaverchand Gandhi
Publisher: Mafatlal Zaverchand Gandhi

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Page 142
________________ भविष्यदत्तचरित्रम 130 सप्तदशमोड धिकार त्रिंशत्तमदिने प्राप्तो, निस्तेजा निर्द्धनः पुनः / अमिमित्रो राजपार्थे, त्रपया नाऽऽययौ भयात् // 37 // भूपेनाऽपि तमाऽऽकर्ण्य, प्राप्तं निर्द्धनरूपतः / मन्त्रिणा प्रेर्यमाणेनाऽऽहूतः करभटैस्ततः // 38 // . कुटुम्बे निर्विलम्बेन, द्विजस्य व्याकुले तदा / सुवाक्यो नृपतेः पार्थ, गत्वा सत्वरमभ्यधात् // 39 // मार्ग स लुष्टितश्चौरैस्त्रपया नैति संसदि / अस्याऽपराधो यदि वा, क्षन्तव्योऽस्मत्समीक्षणात् // 40 // इति दुर्वचनात्तस्य, कोपविस्फरिवाधरः। भूपोऽनिमित्रं कारायामक्षिपद दृढबन्धनम् // 41 // 'पिक्चक्रे वासवं गेहाद्विनिःसार्य द्विजब्रुवम् / भूपः परिजनं तस्य, पश्यन् भीत्या चलाचलम् // 42 // राजाऽपमानतः पाप, दुर्वाक्यो यक्षमन्दिरम् / तत्राऽऽत्मघातं कुर्वाण, कोऽप्याख्यन्मुनिपुङ्गवः // 43 // नियमाणोऽपि निर्वेदात, दुःखपारं न यास्यसि / ईहसे चेत्सुखं भद्र ! तदा धर्ममिहाऽर्जय // 44 // यतः-भोगे रोगभयं सुखे क्षयभयं वित्तेऽग्निभूभृद्भयम् / माने म्लानिभयं, जये रिपुभयं वंशे कुयोषिद्भयं / / दास्ये स्वामिभयं, गुणे खलभयं देहे कृतान्ताद्भयं / सबै नाम भयं सखे ! भज ततो वैराग्यमेवाऽभयम् // 45 // तद्वाक्यात्तेन विप्रेण, दीक्षा जैनी समाददे / क्रमाद्विशुद्धचारित्रः, स सौधर्मे सुरोऽभवत् // 46 // मुकेशाऽपि विरज्याऽऽशु, संसाराऽसारचिन्तया / प्रवज्य संयमाचारान् , निरतीचारमादधे // 47 // आलोचितपतिक्रान्ता प्रान्ताऽनशनभाविता / सौधर्मेऽभूत्सुरो मृत्वा, श्रीसुरप्रभसंज्ञया // 48 // सोमप्रभाख्यो दुर्वाक्यः, मुरः प्राग्भवसंगतैः / मैत्रीपात्रं बभूवाऽस्य, सर्वत्र सहचारतः॥४९॥ 1 वासवदत्तो राजा बन्दीकृतः इति भावार्थः ROORKEE

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