Book Title: Bhavishyadutta Charitram
Author(s): Meghvijay Gani, Mafatlal Zaverchand Gandhi
Publisher: Mafatlal Zaverchand Gandhi
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________________ भविष्यदत्तचरित्रम् सप्तदशमोऽ विकारः भट्टो वासवदत्ताख्यः, सन्मान्यःक्ष्माभुजा भृशम् / सुकेशा रमणी तस्य, निस्सीमप्रेमभाजनम् // 9 // पुत्रौ सुवाक्यदुर्वाक्यौ, तनया च त्रिवेदका / तस्या विवाहः समभूदग्निमित्रद्विजन्मना // 10 // सख्येन गुणमञ्जर्याः, मुकेशान्तःपुरमिया / सर्वत्र नागरैलोकैः, पूज्या विविधकर्मणि // 11 // राज्यमान्यतया भट्टः, सकुदुम्बः पुरान्तरे / विभूत्या प्रचरन् नैव, सेहे विमलमन्त्रिणा // 12 // एकदा भूभुजाऽऽकार्य, जगदे स द्विजाग्रणीः / प्रेष्यते सिंहलद्वीपे, प्राभृतं भीमभूभुजे // 13 // तस्माद्विचक्षणः कश्चिद्वीक्षणीयस्त्वया द्विज ! / इत्युक्तेन स्वजामाता, तेन निन्ये पुरः प्रभोः // 14 // सन्दिश्यमाने राज्ञाऽपि, तस्मै प्राभृतवाचिके / उचिवान् सचिवो वाचं, सभायां समयोचिताम् // 15 // कमप्यन्यं प्रभो ! तत्र, प्रेषयस्व महाशयम् / तादृक् कुतोऽस्मिन् कौशल्यं, येन राजा प्रसीदति // 16 // शौर्य द्विजन्मनां नैव, तद्विना नोत्तरं वचः / परराजसभां दृष्ट्वा, कम्पतेऽसौ मतिभ्रमात् // 17 // श्रुत्वा वासवदत्तेन, प्रोचे सचिवदर्पतः / विषोपमा गिरं वक्षि, किं कार्यस्य विनाशिनीम् // 18 // क्रुद्धेन मन्त्रिणाऽभाणि, मया कि रे ! द्विजाधम ! | वृथा विवदसे सयो, हन्ताऽस्म्याजीविकां तव // 19 // गतेऽय सचिवेऽषि, दत्वा पाभृतमञ्जसा / राज्ञाऽग्निमित्रस्तत्पल्याः , प्रदायाऽऽजीविकां भृशम् // 20 // चलिते नगरात् पत्यौ, कान्ता विरहकातरा / मातरं प्राह भर्ता मे, प्रेषितः क्वाऽपि दूरतः // 21 // मानसे यमाना सा, जगौ माणमियं प्रति / जामाता महितः किं भो, दुहितुर्दुःखकारणम् // 22 // * * *

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