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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ यहाँकी कई अन्य गुफाओंमें भी लेख हैं, किन्तु वे एक-दो पंक्तियोंमें हैं। सभी लेख ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषामें हैं। इन सम्पूर्ण गुफाओं में भी रानी गुफा सबसे बड़ी है, अलंकृत है। यह एक विशाल विहार था, जिसमें मुनियोंका निवास था। इसमें नीचे और ऊपर चौदह प्रकोष्ठ हैं। बरामदे हैं, जिनमें प्रतिहारी बने हुए हैं। बैठनेके लिए उच्च आसन बने हुए हैं। यहाँकी मूर्तियाँ सजीव लगती हैं। - इसमें दरवाजों की धरन और उनके ऊपर तथा दीवालोंपर अनेक उपाख्यान और प्राकृतिक वश्य उत्कीर्ण है। नीचेकी मंजिलसे ऊपरी मंजिलके दश्य अधिक सजीव हैं किन्त ऊपरकी मंजिलकी अपेक्षा नीचेकी मंजिलकी कला अधिक प्राचीन है। एक अन्तर और भी देखने में आता है। नीचेकी मंजिलके चित्रांकनमें सामंजस्य और समानता है, किन्तु ऊपरकी मंजिलके दृश्योंमें पार्थक्य है। यह पार्थक्य कलाका है और कलाकारोंका है। लगता है, ऊपरी मंजिलमें कई कलाकारोंका योगदान रहा है।
सर जॉन मार्शलने इस गुफाके सम्बन्धमें लिखा है कि इस गुफाकी कलाके ऊपर कुछ विदेशी प्रभाव है। ऊपरी मंजिल में एक द्वारपाल यवन वेशभूषामें सुसज्जित है। किन्तु नीचेकी मंजिल में बना हुआ प्रहरी शुद्ध भारतीय परिधान पहने हैं।
दरवाजेके ऊपरकी रेलिंगमें एक स्त्रीके अपहरण और उसकी रक्षाका बड़ा सुन्दर चित्रण है । एक चित्रांकनमें पंखवाले हिरणपर शरसन्धान करते हुए एक धनुर्धरको दिखाया गया है।
. गणेश गुफामें भी इनसे मिलते-जुलते दृश्य अंकित हैं। एक दृश्यमें पुरुष शय्यापर सोया हुआ है, एक स्त्री पुरुषके पाद-मर्दन कर रही है। मंचपुरी गुफामें वृक्ष, लता, पुष्प और जानवरों आदिका भव्य चित्रण है। जय-विजय गुफामें दो यक्षोंके बीच एक पीपलकी पूजा करती हुई दो स्त्रियाँ और दो पुरुष दिखाई पड़ते हैं। स्त्रियाँ पूजाको सामग्री एक-एक पात्रमें लिये हुए हैं। पुरुषोंमें एक पुरुष हाथ जोड़े खड़ा है, दूसरा पुरुष वृक्षकी एक शाखा में माल्यार्पण कर रहा है। व्याघ्र गुफा छोटी ही है। द्वारमें शिलालेख है जिससे ज्ञात होता है कि यह गुफा जैन मुनि सुभूतिकी थी। खण्डगिरिकी नवमुनि गुफामें दसवीं शताब्दीका एक शिलालेख है, जिसमें जैन मुनि शुभचन्द्रके नामका उल्लेख है। ये जैन मुनि कुलचन्द्रके शिष्य थे और खण्डगिरिमें तीर्थयात्राके लिए आये थे। यहाँ एक 'ललाटेन्दु केशरी गुफा' है जो उत्कलके सोमवंशी नरेश उद्योतकेशरी ( अपरनाम ललाटेन्दुकेशरी) ने ९-१०वीं शताब्दीमें बनवायी थीं। इस हिन्दू नरेशने जैन मुनियोंके ध्यानके लिए ९-१०वीं शताब्दीमें यह तथा अन्य कई गुफाएँ बनवायी थीं। इसी कालकी नवमुनि गुफा, बाराभुजी आदि कई गुफाएँ हैं। इससे मालूम पड़ता है कि यह स्थान ईसा पूर्वसे दसवीं शताब्दी तक जैनधर्मका सुदृढ़ केन्द्र था। - राजगृहीकी सोनभण्डार तथा उसकी निकटवर्ती दूसरी गुफाका निर्माण मुनि वैरदेवने जैन मुनियोंके ध्यानके लिए कराया था और उनमें अर्हन्तोंकी प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करायीं। यद्यपि पुरातत्त्ववेत्ताओंने इन गुफाओंका निर्माण-काल ईसाकी तीसरी-चौथी शताब्दी निश्चित किया है। किन्तु जैन साहित्यके साक्ष्यके आधारपर यह काल ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी अथवा ईसाकी प्रथम शताब्दी सिद्ध होता है। तिलोयपण्णत्तिमें वैरजसका नाम आया है जो अन्तिम प्रज्ञाश्रमण थे। सम्भवतः आर्य वैरदेव ही वैरजस थे।
बिहार-बंगाल-उड़ीसामें इनके सिवाय अन्य कोई उल्लेखनीय जैनगुफा नहीं है।