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बिहार - बंगाल - डड़ीसा के दिगम्बर जैन तीर्थं
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एक मुनिराजने इस प्रतिमाका इतिहास बताते हुए कहा कि यह रत्नमय प्रतिमा पहले मलयगिरिपर थी । नभस्तिलक नामक स्थानके दो विद्याधर यात्रार्थं निकले थे । उन्होंने मलयगिरिपर यह प्रतिमा देखी तो वे अपने जिनालय में विराजमान करनेके लिए उठा लाये । किन्तु जाते हुए मार्ग में वे यहाँ ठहरे। दूसरे दिन जब वे इसे उठाने लगे तो प्रतिमा नहीं उठी । आखिर "उसे यहीं छोड़ना पड़ा। एक बार रथनूपुरके नील और महानील युद्धमें हारकर यहाँ बस गये । उन्होंने यहाँ एक लयण बनवाया । इसके प्रभाव से उसे गयी हुई विद्याएँ मिल गयीं ।
लयण, प्रतिमा और मन्दिर सभी अबतक विद्यमान हैं । मन्दिरको बने हुए लगभग २९०० अथवा २८०० वर्ष हो चुके हैं । लयण और प्रतिमाका निर्माण-काल तो सम्भवतः और भी पुराना होगा । लेकिन निश्चय ही लयण और प्रतिमा भगवान् पार्श्वनाथके कुछ पश्चाद्वर्ती काल के हैं । - करकण्डुचरित्र - मुनि कनकामर विरचित इस प्रकार न जाने कितनी घटनाएँ चम्पाके साथ जुड़ी हुई हैं, जिनका वर्णन विभिन्न पुराणों और कथाग्रन्थोंमें मिलता है ।
इतिहास और पुरातत्त्व
भगवान् आदिनाथ और भगवान् पार्श्वनाथने भारतके जिन क्षेत्रों में विहार करके धर्मंदेशना दी थी, उनमें अंग देशका भी नाम आता है । चम्पा प्राचीन कालमें अंग देशकी राजधानी थी । इनके पश्चात् भगवान् महावीर भी यहाँ पधारे ।
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उनके पश्चात् उपासकेदसांग सूत्रके अनुसार यहाँ सुधर्मास्वामी पधारे थे । सुधर्मा - स्वामीके पश्चात् केवलज्ञानकी अवस्थामें जम्बूस्वामीका भी पदार्पण हुआ था ।
भगवान् महावीरके कालमें चम्पाका राजा दधिवाहन था। वह अधिक प्रभावशाली नहीं था । उसके एक ओर मगध था, जहाँका नरेश श्रेणिक बिम्बसार अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी था । दूसरी ओर वैशालीका वज्जिसंघ था, जिसकी शक्ति उन दिनों अपराजेय समझी जाती थी । वज्जिसंघ प्रजासत्ताक राज्य था । अतः उसकी कोई साम्राज्यवादी महत्त्वाकांक्षा नहीं थी । किन्तु बिम्बसार - की इच्छा सम्राट् बनने की थी । अतः उसने महासेनापति भद्रिकके सेनापतित्वमें एक विशाल सेना देकर चम्पाके विरुद्ध अभियान छेड़ दिया । मगधके महामात्य वर्षंकारकी कूटनीति और आर्य भद्रिकके शौर्य ने चम्पाको भीषण पराजय दी । चम्पानरेश दधिवाहन मारे गये । चम्पापर मगधका आधिपत्य हो गया । बिम्बसारने चम्पाकी व्यवस्था और शासनकी देखभाल करनेके लिए अपने पुत्र कुणिक अजातशत्रुको उपरिक बनाकर भेजा । अजातशत्रुने वहाँ रहकर बड़ी योग्यतासे शासन किया ।
बिम्बसार के जीवन कालमें ही अजातशत्रुने साम्राज्यकी बागडोर सँभाली और विस्तृत साम्राज्य की व्यवस्थाके लिए कई परिवर्तन किये । उसकी दृष्टि मुख्यतः वैशाली गणराज्यकी विजयपर केन्द्रित थी । अतः उसने गंगा और सीही नदियोंके संगमपर पाटलिग्राम में एक सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण कराया। दूसरे चम्पाको अपनी राजधानी बनाया। इस प्रकार चम्पाको भी मगध साम्राज्यकी राजधानी बननेका सौभाग्य प्राप्त हुआ । किन्तु यह सौभाग्य कितने दिनों तक अक्षुण्ण रहा, इतिहासकार इस सम्बन्धमें प्रायः मौन हैं। किन्तु इसमें सन्देह नहीं है कि अजातशत्रु-जैसे महत्त्वाकांक्षी युवक सम्राट् के लिए चम्पाका विशेष महत्त्व था । वहाँ रहकर वह वैशालीके विरुद्ध
१. अभिधान राजेन्द्र कोष, भाग ३, पृ. १०९८ । भाग २- ९