Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 280
________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके जैन तीर्थ संक्षिप्त परिचय और यात्रा-मार्ग भद्रिकापुरी और कुलुहापहाड़-दिल्ली जंकशनसे ट्रेन द्वारा गया जाना चाहिए । गया दिल्ली-हवड़ा मेन लाइनपर दिल्लीसे नौ सौ चौरासी कि. मी. दूर प्रसिद्ध जंकशन है। गयामें ठहरनेके लिए सुविधापूर्ण स्थान जैन भवन है जो स्टेशनसे लगभग तीन कि. मी. है और जैन मन्दिरके निकट अवस्थित है। वहाँसे बस द्वारा डोभी बत्तीस कि. मी., डोभीसे हण्टरगंज पन्द्रह कि. मी., हण्टरगंजसे घंघरी आठ कि. मी. है। यहाँ तक सड़क पक्की है। घंघरीसे दन्तारगाँव कच्ची सड़कपर आठ कि मी. पड़ता है। दन्तारगांवके लिए घंघरीसे रिक्शे मिलते हैं। दन्तारगाँवमें जैन धर्मशाला और चैत्यालय बना हुआ है । भद्रिकापुरी आजकल भोंदलगाँव कहलाता है। यहाँके लिए पक्की सड़कसे कच्चा मार्ग जाता है। यह भगवान शीतलनाथका गर्भ और जन्म-कल्याणक स्थान माना जाता है। किन्तु आजकल यहाँ प्राचीन जैन मन्दिर और जैन धर्मशालाके चिह्नों और अवशेषोंके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। कुलुहापहाड़पर भगवान् शीतलनाथके दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक मनाये गये थे। कुलुहापहाड़के लिए घंघरी होते हुए दन्तारगाँव जाना सुविधाजनक है। दन्तारगाँवकी जैन धर्मशालाके कर्मचारीको लेकर पहाड़पर जाना चाहिए। दन्तारगाँवसे यह पहाड़ एक मील दूर है। फिर लगभग दो मीलकी चढ़ाई है। दो मील चढ़नेपर ईंटोंका ध्वस्त प्राकार मिलता है। यह तिरपन एकड़में फैला हुआ है। इससे आगे बढ़नेपर एक विशाल सरोवर मिलता है। दायीं ओरको ऊपर चढ़नेपर पार्श्वनाथ जैन मन्दिरके दर्शन होते हैं। इसमें पार्श्वनाथकी एक प्राचीन मूर्ति है जो सुरक्षाकी दृष्टिसे सीमेण्टसे दीवालमें जड़ दी गयी है। यह श्याम वर्ण, पद्मासन और २२ इंच ऊँची है। यह काफी घिस चुकी है। इससे आगे पगडण्डी द्वारा जानेपर पहाड़की खड़ी दीवालमें दस तीर्थंकर मूर्तियोंके दर्शन होते हैं। ये सभी पद्मासन हैं और इनकी अवगाहना दस इंच है । मूर्तियोंके नीचे उनके लांछन (चिह्न) बने हुए हैं। इससे थोड़ा और आगे जानेपर दूसरी पहाड़ी दीवालमें पाँच पद्मासन और पाँच खड्गासन तीर्थंकर मूर्तियाँ बनी हुई हैं । पद्मासन मूतियाँ एक फुट और खड्गासन मूतियाँ सवा दो फुट ऊंची हैं। सबके नीचे उनके चिह्न अंकित हैं। __यहाँसे आगे जानेपर एक ऊँची चट्टानपर प्राचीन चरण-चिह्न बने हुए हैं । शिला एकदम सपाट और चिकनी है। इसके ऊपर चढ़नेमें काफी कठिनाई होती है। इन चरणोंके कारण ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन कालमें यहाँसे कोई मुनि मुक्त हुए होंगे। ____ इस शिलासे आगे चलनेपर ढलावपर पाण्डुक शिला बनी हुई है। फिर कौलेश्वरी देवीका छोटा-सा मन्दिर मिलता है। इसमें महिषके ऊपर खड़ी हुई चतुर्भुजी कौलेश्वरी देवीकी मूर्ति विराजमान है। इस मन्दिरसे आगे जानेपर एक गुफामें भगवान् पार्श्वनाथकी मूर्ति रखी हुई है। इसकी अवगाहना दो फुट है। सिरपर नौ फण हैं।

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